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________________ साथ ही जिस ज्ञान को स्मृति में रखे वह किसी शिष्य वा पुस्तकादि के आश्रय न होवे क्योंकि इस प्रकार करने से, स्मरणशक्ति की निर्वलता पाई जाती है अतः अनिश्रित ज्ञान धारण करे ५ उस ज्ञान में संदेह नहो; सारांश यह है कि बिना संशय उस ज्ञान को धारण करे । क्योंकि-सांशयिक ज्ञान अप्रामाणिक माना जाता है ६ इस प्रकार धारणामति के छै भेद वर्णन किये गये हैं। सो इसी को मतिसंपत् कहते हैं। छठी मतिसंपत् के कहे जाने के पश्चात् अब सूत्रकार सातवीं प्रयोग मतिसपत् विषय कहते हैं : सेकिंत पोग मइ संपया ? पोगमइ संपया चउबिहा पएणत्ता तंजहा-आयविदाय वायं पउंजित्ता भवइ १ परिसं विदायवाय पउजित्ता भवइ २ खेतं विदायवाय पउंज्जित्ता भवइ ३ वत्थुविदायवायं पउंजित्ता भवइ ४ सेतं पश्रोगमइ संपया ॥७॥ अर्थ-शिष्यने प्रश्न किया कि-हे भगवन् ! प्रयोग मतिसंपत् किसे कहते हैं ? गुरु ने उत्तर में कहा कि-प्रयोगमातिसंपत् चार प्रकार से प्रतिपादन की गई है जैसे कि-अपनी आत्मा की शक्ति देखकर वाद विवाद करना चाहिए १ परिषत् भाव देखकर वाद करना चाहिए २ तथा क्षेत्र को देखकर ही वाद करना चाहिए ३ वाद के प्रकरण विषय को देखकरही वाद करना चाहिए यही प्रयोग मतिसंपत् के भेद हैं। • सारांश-छठी संपत् के पश्चात् शिष्य ने सातवीं प्रयोगमातसंपत् के विषय में प्रश्न किया कि-हे भगवन् । प्रयोगमतिसंपत् किसे कहते हैं और उसके कितने भेद हैं ? इस के उत्तर में गुरुने कहा कि हे शिष्य ! प्रयोगमतिसंपत् का यह अर्थ है कि-यदि धर्म चर्चादि करने का सुअवसर प्राप्त हो जावे तव मति से विचार कर ही उक्त क्रियाओं में प्रवृत्त होना चाहिए क्योंकि-धर्म चर्चा करने के मुख्य दो उद्देश्य होते हैं एकतो पदार्थों का निर्णय १ द्वितीय धर्म प्रभावना २। दोनों बातों को ठीक समझ कर उक्त काम में कटिवद्ध होना चाहिए। __ इसके चार भेद प्रतिपादन किए गये हैं जैसेकि-जव वाद करने का समय उपस्थित हो तव अपनी आत्मा की शक्ति को अवश्यमेव अवलोकन करना चाहिए जिससे पीछे उपहास न हो । परिपत् के भाव को देखकर वाद का प्रयोग करे जैसे कि क्या यह सभा ज्ञात है वा अज्ञात है अथवा दुर्विदग्ध है तथा उपहासादि करने वाली है क्योंकि जानकार परिषद् पदार्थ के निर्णय को चाहती है १ अनजान सभा केवल समझना चाहती है २ दुर्विदग्ध सभा अपना
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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