SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६२ ) सेकिंतं वयण संपया ? वयण संपया चउन्विहा पण्णत्ता तंजहा । आदेय वयणेयावि भवइ १ महुरवयणयावि भवइ २ अणिस्सिय बयणेयावि भवइ ३ असंदिद्ध बयणेयावि भवइ ४ सेतं वयण संपया ।। अर्थ--शिष्य ने प्रश्न किया कि हे भगवन् ! वचन संपत् किसे कहते हैं? गुरु ने उत्तर में कहा कि-वचन संपत् चार प्रकार से प्रतिपादन की गई है जैसे कि-आदेय वाक्य युक्त हो १ मधुरभाषी हो २ पक्षपान से रहित होकर भाषण करे ३ संदेह रहित वचन बोले ४ यही वचन संपत् के भेद हैं । साराश-तृतीय संपत् के पश्चात् शिष्य ने चतुर्थ संपत् विषय प्रश्न किया कि-हे भगवन् ! वचन संपत् किसे कहते है ? इसके उत्तर में गुरु ने कहा कि हे शिष्य ! शास्त्रोक्त रीतिसे भाषण करना यही वचन संपत् का अर्थ है परन्तु इस के भी चारही भेद प्रतिपादन किये गये हैं जैसेकि जिस वाक्य को वादी प्रतिवादी सब ही ग्रहण करें ऐसा वचन वोलनेवाला होवे अर्थात् समयानुकूल सबके ग्रहण करने योग्य वाक्य को उच्चारण करे १मधुर और गंभीरता युक्त वचन को भाषण करे जिससे श्रोतागण को परम प्रसन्नता वा सुख उत्पन्न होवे २ परन्तु भाषण करते समय पक्षपात से रहित होकरही वचन का प्रयोग करे कोंकि जो वाणी पक्षपात से युक्त होती है वह सर्व ग्राह्य वा प्रसन्नता उत्पन्न करने वाली नहीं होती किन्तु क्लेश के उत्पादन करने वाली हो जाती है अत पक्षपात से रहित वचन उच्चारण करे ३ । साथ ही जो वचन संदेह रहित व जो प्रकरस संशय रहित होवे उसी की व्याख्या करे क्योंकि जिस विषय अपने मन में ही संशय उत्पन्न होरहा है उस प्रकरण को सुनकर श्रोतागण किस प्रकार निःसंदेह होसकते हैं तथा मिश्रित वाणी भाषण न करे किन्तु स्पष्टवक्ता होना चाहिए। ___ चौथी वचन संपत् के पश्चात् अव सूत्रकार पंचम वाचना संपतू के विषय में कहते हैं : सेकिंत वायणा संपया ? वायणा संपया चउन्विहा पएणत्ता तंजहा । विजय उद्दिस्सइ १ विजय वायइ २ परिनिव्वा वियएइ वा ३ अत्थ निजावएयाविभवइ ४ सेतं बायणा संपया ॥ अर्थ-शिष्य ने प्रश्न किया कि हे भगवन् ! वाचना सपत् किसे कहते हैं ? गुरु ने उत्तर दिया कि हे शिष्य ! वाचना संपत् चार प्रकार से प्रतिपादन की गई है जैसे कि-शिप्य की योग्यता देख कर पठन विषय आज्ञा देनी चाहिए १ योग्यता देखकर ही वाचना देनी चाहिए २ सूत्रपाठ अस्खलित और संहिता ,
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy