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________________ ऐतिहासिक निर्णय विश्वधर्म प्रेरक मुनि श्री विद्यानन्द जी, मुनि श्री कान्तिसागर जी, पिया सम्मेलन संयोजक मुनि सुशीलकुमार जी. तथा अणुबत प्रचारक मुनि महेनीपारों सम्प्रदायों के मुनिराजों ने मार्च १९७१ के प्रथम सप्ताह में बवाना स्थित दिगम्बर जैन धर्मगाजा, दिल्ली में 'जैन-मासन' के ना के संबंध में नौपचारिक विचारविनिमय के साथ पांच रंग-१-अरुणाभ, २-पीताभ, ३-बल, ४-- हरिताभ तवा ५-नीलाभ के वर का सर्वसम्मति से अनुमोदन किया। प्रस्तुत पुस्तिका में जैन शामन के मण्डे का संक्षिप्त विवरण देते हुए उसके वास्तविक स्वरूप का सैद्धान्तिक निरूपण किया गया है। चतुर्गति का प्रतीक स्वस्तिक बहुत प्राचीन है। श्रमण-संस्कृति में इसकी विशेष मान्यता है। इसीलिए इसे ध्वज के मध्य में स्थान दिया गया है। जैन समाज में ध्वज की विभिन्न परिपाटियां प्रचलित है। एक सार्वभौम ध्वज को अपनाकर उसे समस्त जैन समाज में प्रचलित करना चाहिए। पंच-रंग का ध्वज पंच परमेष्ठी का प्रतीक होने से समस्त जैन समाज के लिए भाव का प्रतिनिधि बनेगा और सदैव प्रेरणा प्रदान करेगा। हमारी कामना है कि यह अज सार्वभोम रूप से जैन ममाज में अपनाया जाकर सदैव चलता रहे। जैसे णमोकार मंत्र का समस्त समाज में एक रूप है, वैसी ही एकरूपता इस ध्वज को भी प्राप्त हो। जन समाज इस ध्वज के नीचे मंगठित होकर, जैन गासन की इस विजय-पताका को फहराता हमा जिन-धर्म को सुदृढ़ बनावेगा। इस ला पुस्तिका में जैन मामन का ध्वज, उसका पाल्प, उसका महत्त्व, स्वस्तिक प्रतीक का महत्व, ध्वजारोहण की विधि, ध्वजगीत, धर्मवक आदि का शास्त्रीय प्रमाण सहित विवरण प्रस्तुत किया है। २५००३ तीर्थर महावीर निर्वाणोत्सव के शुभ अवसर पर इस ला पुस्तिका का प्रकासन इस संबंध में प्रामाणिक जानकारी प्रदान करने हेतु किया है। बामा है जैन समाज इसका उपयोग करके मेरे परिश्रम को सार्थक बनायेगा। यह पांच रंगों का ध्वज पंच परमेष्ठी का प्रतीक तो है ही, साथ ही इसे नेवार्य में पंच बनत एवं पंच महावत का प्रतीक भी माना जा सकता है। बनवत धावकों के लिए बोर महाबत श्रमणों के लिए होते हैं। धवल रंग अहिंसा का, मल्लाप सत्व का, पीताप बर्वि का, हरिताप बापर्य का तवा नीलाम अपरिबह का बोतक माना या सकता है। यह संगति भी बहुत उपयुक्त प्रतीत होती है। पंच परमेष्ठियों में बहस बार
SR No.010276
Book TitleJain Shasan ka Dhvaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaykishan Prasad Khandelwal
PublisherVeer Nirvan Bharti Merath
Publication Year
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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