SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन पूजांजलि इस भव वन में उलझे रहते तो जिनवर अरहंत न होते । ज्ञाता दृष्टा शुद्ध स्वरूपी मुक्तिकंत भगवंत न होते ॥ तनको प्यास बुझाने वाला यह निर्मल जल लाया हूँ। प्रात्मज्ञान की प्यास बुझाने प्रभु चरणों में पाया हूँ॥ चंद्र जिनेश्वर चंद्रनाथ चंद्रेश्वर चंदा प्रभु स्वामी । रागद्वेष परिणति के नाशक मंगलमय अन्तर्यायो । ॐ ह्रीं श्री चंदप्रभ जिनेन्द्राय विविधताय विनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। तन का ताप मिटाने वाला शीतल चंदन लाया हूँ। राग आग की दाह मिटाने प्रभु चरणों में प्राया हूँ॥ चंद्र० ॐ ह्रीं श्री चंदप्रभ जिनेन्दाय संसार ताप विनाशनाय चंदनन नि । परम शुद्ध अक्षय पद पाने उज्ज्वल प्रक्षत लाया हूँ। भव समुद्र से पार उतरने प्रभु चरणों में पाया हूँ ॥ चंद्र० ॐ ह्रीं श्री चंदप्रभ जिनेन्दाय अक्षय पद प्राप्ताये अक्षतम् निम्बा।। कामवाण से घायल होकर पुष्प मनोहर लाया हूँ। महाशील शोलेश्वर बनने प्रभु चरणों में आया हूँ॥ चंद्र० ॐ ह्रीं श्री चंदप्रभ जिनेन्दाय कामवाण विध्वंसाय पुष्पम् नि स्वाहा । पर द्रव्यों से भूख न मिट पाई तो प्रभु चरु लाया हूं। प्रात्म तत्त्व की भूख मिटाने प्रभु चरणों में पाया हूं ॥ चंद्र० ॐ ह्रीं श्री चंदप्रभ जिनेन्दाय क्षुधारोग विनाशनाय नैवद्यम् नि० । अन्धकारतम हरने वाला दीप प्रभामय लाया हूं। आत्म दीप की ज्योति जलाने प्रभु चरणों में पाया हूं ॥ चंद्र० ॐ ह्रीं श्री चंदप्रभ जिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपम् नि० । पर परिणति का धुवां उड़ाने धूप सुगंधित लाया हूं। प्रष्ट कर्मपरि पर जय पाने प्रभु चरणों में आया हूं ॥ चंद्र० ॐ ह्रीं श्र चंदप्रभ जिनेन्द्राय अप्ट कर्म दहनाय धूपम् नि० स्वाहा ।
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy