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________________ ५८] जैन पूजांजलि पुण्य मार्ग तो सदा बहिर्मुख धर्म मार्ग अंतर्मुख है। पुण्यो का फल जगत भ्रमण दुख और धर्म फल शिव सुख है ।। जय ऋषभदेव जिनराज शिव सुख के दाता । तुम सम हो जाता है स्वयं को जो ध्याता ॥ ॐ ह्रीं श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। समकित चन्दन दो नाथ भव सन्ताप हरू । चरणों में मलय सुगन्ध हे प्रभु भेंट करूं ॥ जय ऋषभ० ॐ ह्रीं श्री ऋपभदेव जिनेन्द्राय संसार ताप विनाशनाय चन्दनम् नि । समकित तन्दुल की चाह मन में मोद भरे । अक्षत से पूजू देव प्रक्षय पद पद संवरे ॥ जय ऋषभ० ___ॐ ह्री श्री ऋपभदेव जिनेन्द्राय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतम् नि। समकित के पुष्प सुरम्य दे दो हे स्वामी । यह काम भाव मिट जाय हे अन्तर्यामो ॥ जय ऋषभ० __ ॐ ह्रीं श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय कामवाण विध्वंसनाय पुष्पमं नि० । समकित चर करो प्रदान मेरी भूख मिटे । भव भव की तृष्णा ज्वाल उर से दूर हटे ॥ जय ऋषभ. __ ॐ ह्रीं श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् नि । समकित दीपक को ज्योति मिथ्यातम भागे । देखू निज सहज स्वरूप निज परणति जागे ॥ जय ऋषभ० __ॐ ह्रीं श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् नि । समकित को धूप अनूप कर्म विनाश करे । निज ध्यान अग्नि के बीच आठों कर्म जरे ॥ जय ऋषभ० ॐ ह्रीं श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूपम् नि० स्वाहा। समकित फल मोक्ष महान् पाऊं आदि प्रभो । हो जाऊ सिद्ध समान सुखमय ऋषभ विभो ॥ जय ऋषभ० ॐ ह्रीं श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय मोक्ष फल प्राप्तये फलम् नि० स्वाहा ।
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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