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________________ जन पूजांजलि एक बार भी निज आतम का वैभव देख नहीं पाया। इसीलिए नो भव अटवी में भ्रम भ्रम कर अति सुख पाया ॥ ------ ----- - -- - --- - ----- ---- जयमाला x मध्य लोक में एक लाख योजन का जम्बू द्वीप प्रथम । द्वीप धातको खण्ड दूसरा तीजा पुष्करवर अनुपम । चौथा द्वीप वारुणीवर है द्वीप क्षीरवर है पंचम । षष्टम् घृतवर द्वीप मनोहर द्वीप इक्षुवर है सप्तम ॥ अष्टम द्वीप श्री नन्दीश्वर अद्वितीय शोभा धारी। योजन कोटि एक सौ बेसठ लख चौरासी विस्तारी ॥ पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण दिशि में हैं अंजन गिरि चार। इनके भव्य शिखर पर जिन चैत्यालय चारों हैं सुखकार ॥ चहुँ दिशि चार चार वापी हैं लाख लाख योजन जलमय । इनमें सोलह दधि मुख पर्वत जिन पर सोलह चैत्यालय ॥ सोलह वापी के दो कोणों पर इक इक रतिकर पर्वत । इन पर हैं बत्तीस जिनालय जिनकी है शोभा शाश्वत ॥ कृष्ण वर्ण अञ्जन गिरि चौरासी सहस्त्र योजन ऊँचे । श्वेत वर्ण के दधि मुख पर्वत दस सहस्र योजन ऊंचे ॥ लाल वर्ण के रतिकर पर्वत एक सहस्त्र योजन ऊंचे। सभी ढोल सम गोल मनोहर पर्वत हैं सुन्दर ऊँचे ॥ चारों दिशि में महा मनोरम कुल जिन चैत्यालय बावन । सभी प्रकृत्रिम अति विशाल हैं उन्नत परम पूज्य पावन ॥ जिन भवनों का एक शतक योजन लम्बाई का पाकार । अर्ध शतक चौड़ाई पचहत्तर योजन ऊंचा विस्तार ॥ !सठ बन की सुषमा से शोभित है अनुपम नन्दीश्वर । है अशोक सप्तछद चम्पक आम्र नाम के बन सुन्दर ।
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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