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________________ जैन पूजांजलि [२०३ टाल अरे तू पंचाश्रव को पाल अरे तू पंचाचार । परम अहिंसा तप संयम धारी बन कर तज विषय विकार ॥ प्रात्म ज्ञान को महा शक्ति से परम शान्ति सुखकारी हो। ज्ञानी ध्यानी महा तपस्वी स्वामी मङ्गलकारी हो॥ धर्म ध्यान में लीन रहूँ मैं प्रभु के पावन चरण गहूं। जब तक सिद्ध स्वपद ना पाऊं सदा आपकी शरण लहूं ॥ श्री जिनेन्द्र के धर्म चक्र से प्राणि मात्र का हो कल्याण । परम शांति हो परम शांति हो परम शांति हो हे भगवान् ॥ शांति धारा नौ बार णमोकार मन्त्र का जाप्य विसर्जन पाठ जो भी भूल हुई प्रभु मुझसे उसकी क्षमा याचना है। द्रव्य भाव को भूल न हो अब ऐसी सदा कामना है। तुम प्रसाद से परम सौख्य हो ऐसी विनय भावना है । जिन गुण सम्पत्ति का स्वामी हो जाऊँ यही साधना है ।। शुद्धातम का प्राश्रय लेकर तुम समान प्रभु बन जाऊं। सिद्ध स्वपद पाकर हे स्वामी फिर न लौट भव में पाऊँ॥ ज्ञान होन हूँ क्रिया होन हूं द्रव्य हीन हूं हे जिन देव । भाव सुमन अर्पित हैं हे प्रभु पाऊँ परम शान्ति स्वयमेव ॥ पूजन शान्ति विसर्जन करके निज आतम का ध्यान धरू। जिन पूजन का फल यह पाऊँ मैं शाश्वत कल्याण करू ॥ मङ्गलमय भगवान् वीर प्रभु मङ्गलमय गौतम गणधर । मङ्गलमय श्री कुन्द कुन्द मुनि मङ्गल जिनवाणी सुखकर ॥ सर्व मङ्गलों में उत्तम है णमोकार का मन्त्र महान । श्री जिन धर्म भेष्ठ मङ्गलमय अनुपम वीतराग विज्ञान ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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