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________________ जैन पूजांजलि [२०१ इन्दिर गुस्त दुःलागी जानकर चलो अतीन्द्रिय सुख के देश । पूर्ण अनोच्य जुद्ध आत्मा के भीतर अब करो प्रदेश ।। - - - . महाअर्घ श्री अरहंत देव का पूजें श्री सिद्ध प्रभु को पूजू । प्राचारों के चरणाम्बुज, श्री उपाध्याय के पर पूज ॥ सर्व सायद पू, श्री जिन द्वादशांग दाली पूज। जोस की ब्रोम विदेही, जिनवर सोनार पजू ॥ कृत्रिम अकृत्रिः तीन तक के जिन गृह जिन प्रतिमा पूजें। पंचमेरु मनोश्वर पर तेरह दीप चत्य पूजू ॥ सोलह कारण शिक्षण रत्नत्रय धर्म सदा पज । भूत भविष्य : वर्तमान की त्रय जिन चौबीसी पज ॥ श्री वृष माटिक वीर जिनेश्वर षिगणधर स्वामी पूज। श्री जितराज सहल नाम श्री मोक्ष शास्त्र प्रादि पूजू॥ श्री पर कल्याणक पज विवि: विधान महा पूजू । ग.तम स्वामी कुन्द कुन्द प्राचार्य सु समयसार पू॥ चम्पार पसार गिरतारी कैलाश शिखर पूजू । श्री मम्मेद शिखर पर्वत जिन पर निर्वाण क्षेत्र पूज। तीर्थ को जन्म भूमि अतिशय अन मिद्ध क्षेत्र पूज। श्री जन धर्म श्रेष्ठ मङ्गलमय महा अर्घ दे मैं पूज। ॐही या जगहत, मिड, आचार्य, आध्याय, सर्वसाधु पच परमेटो, द्वादशग जिनवानी, नीम चौवीनी, विद्यमान वान नीकर मीमन्धर वाम अकृविग जिन मन्दिर, जिन प्रतिमा पंचमेक, नन्दीबर नेहवी निनालय, गोलह कारण भावना, दशलक्षण धर्म रत्नत्रय धर्म, नन् भदिप्यत वर्तमान चौबीमी, श्री कृपभादिक वीर जिनम्वर. परम ऋषि, मगधर देव, श्री मिन महस्र नाम, मोक्ष शास्त्र, थी जिन पंच कल्याणक गौतम स्वामी, कुन्द कृन्दाचार्य, ममयम २, कैलाश, C
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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