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________________ १८२] जैन पूजांजलि सिद्ध दशा को चलो साधने सब सिद्धों को वंदन कर । सम्यक दर्शन की महिमा से आत्म तत्व का दर्शनकर ।। जाप्य इसीलिए मैं शरण आपकी आया हूं जिन देव महान । सम्यक् दर्शन मुझे प्राप्त हो, पाऊँ स्वपर भेदविज्ञान । नित्य नियम पूजन करके प्रभु निज स्वरूप का ज्ञान करूं। पर्यायों से दृष्टि हटा, बन द्रव्य दृष्टि निज ध्यान कर। ॐ ह्रीं श्री सर्व जिन चरणाग्रेषु पूर्णार्घम नि। नित्य नियम पूजन करूं जिनवर पद उर धार। प्रात्म ज्ञान को शक्ति से हो जाऊँ भव पार ।। ॥ इत्याशीर्वाद ॐ ह्रो श्री सर्व जिनेभ्यो नमः । -: :श्री जिनेन्द्र पंच कल्याणक पूजन चौबीसों जिन के पांचों कल्याणक शुभ मंगलदायी। गर्भ जन्म तप ज्ञान मोक्ष कल्याणक पूजू सुखदायी ॥ ऋषभ अजित संभव अभिनंदन सुमति पद्म सुपार्श्व भगवंत। चंद्र सुविधि शीतलश्रेयांस जिन वासु पूज्य प्रभु विमल अनंत ॥ धर्म शांति प्रभु कुन्थु परहजिन मल्लि मुनिसुव्रत नमि गुणवंत । नेमि पाश्र्व प्रभु महावीर के पांचों मंगल जय जयगंत ॥ ___ॐ ह्रीं श्री जिनेन्द्र पंच कल्याणक समूह अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री जिनेन्द्र पंच कल्याणक समूह अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री जिनेन्द्र पंच कल्याणक समूह अत्र मम् सन्निहितो भवभव वपट् । शुभ्रनीर को तीन धार दे जन्म जरा मृतु हरण करू। सम्यक दर्शन को विभूति पा मोक्ष मार्ग को पहरण करू ॥ जिन तीर्थङ्कर के बत लाए रत्नत्रय को वरण करूं। गर्भ जन्म तप ज्ञान मोक्ष पाँचों कल्याणक नमन करूं। ॐ ह्रीं श्री जिनेन्द्र पत्र कल्याणकेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम निर्वपामीति स्वाहा ।
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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