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________________ १७०] जैन पूजांजलि जड़ से प्रीत न की होती तो चेतन अगणित दुख न उठाता । भव पीड़ा कब की कट जाती मुक्ति वधू मिलती हर्षाता ।। सर्व मङ्गलों में सर्वोतम सर्वश्रेष्ठ मङ्गलदाता । ह्रीं शब्द में गभित चौबीसों तीर्थङ्कर विख्याता ॥ एमोकार पैंतिस अक्षर का मंत्र पवित्र ध्यान करलू । यह नवकार मंत्र अड़सठ अक्षर से युक्त ज्ञान करलू ॥ "अर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुनमः" भज लू । सोलह अक्षर का यह पावन मंत्र जपूँ दुष्कृत तज ॥ छह अक्षर का मंत्र जपूं अरहंत सिद्ध को नमन करूं। असि पा उ सा पंचाक्षर का मंत्रजपू अघ शमन करू ॥ अक्षर चार मंत्र जप लूं अरहंत देव का ध्यान करूं । अर्हम अक्षर तीन, मंत्र जप स्वपर भेव विज्ञान करूं ॥ दो अक्षर का "सिद्ध" मंत्र जप सर्व सिद्धियां प्रगट करूं। प्रक्षर एक ॐ ही जपकर सब पापों को विघट करूं॥ सप्ताक्षर का मंत्र "णमो प्ररहंताणं" का जाप करूं। छह अक्षर का मंत्र "गमो सिद्धारणं" जप भव ताप हरू। सप्ताक्षर का मंत्र "णमो पाइरियाणं" जप हर्षांऊँ । सप्ताक्षर का "णमो उवज्ञायारणं" जप कर मुस्काऊँ ॥ नो प्रक्षर का "मंत्र णमो लोए सव्वसाहरणं" ध्याऊँ। "एसो पंच णमोयारो" जप सर्व पाप हर सुख पाऊं ॥ नव पद या नवकार पांच पद का मैं णमोकार ध्याऊँ । एक शतक सत्ताइस प्रक्षर का चत्तारि पाठ गाऊं ॥ "चत्तारि मङ्गलम्" श्रेष्ठ मङ्गल है जग में परम प्रधान । "अरिहंता मङ्गलम्" पाठ कर ग्राऊँ निज प्रातम के गान॥ "सिद्धामङ्गलम्" "साहू मङ्गलम्" का मैं भाव हृदय भर लूं। "केवलि पण्णत्तो धम्मो मङ्गलम्" स्वधर्म प्राप्त करलूं ॥
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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