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________________ जैन पूजांजलि वीतरागी शान्त-मुद्रा के दर्शन से आत्मा में शांति प्रगट होती। मंगलमय श्री विमलनाथ विभु, मंगल अनन्तनाथ महेश मंगलमय श्री धर्मनाथ प्रभ, मंगल शान्तिनाथ चक्रेश मंगलमय श्री कुन्थुनाथ जिन मंगल श्री प्ररनाथ गुणेश मंगलमय श्री मल्लिनाथ प्रभु मंगल मुनिसुव्रत सत्येश मंगलमय नमिनाथ जिनेश्वर मंगल नेमिनाथ योगेश मंगलमय श्री पार्श्वनाथ प्रभु, मंगल वर्धमान तीर्थोश मंगलमय अरिहंत महाप्रभु मंगल सर्व सिद्ध लोकेश मंगलमय श्री सर्वसाधुगण, मंगल जिनवाणी उपदेश मंगलमय सीमन्धर आदिक, विद्यमान जिन वीस परेश मंगलयय त्रैलोक्य जिनालय मंगल जिन प्रतिमा भव्येश मंगलमय त्रिकाल चौबीसी मंगल समवशरण सविशेश मंगल पंचमेरु जिन मन्दिर, मंगल नन्दीश्वर द्वीपेश मंगल सोलह कारण दशलक्षण, रत्नत्रय व्रत भव्येश मंगल सहस्र कूट चैत्यालय मंगल मानस्तम्म हमेश मंगलमय केवल श्रुत केवलि मंगल ऋद्धिधारी विधेश मंगलमय पांचों कल्याणक, मंगल जिन शासन उद्देश मंगलमय निर्वाण मूमि, मंगलमय अतिशय क्षेत्र विशेष सर्व सिद्धि मंगल के दाता हरो अमंगल हे विश्वेश जब तक सिद्ध स्वपद ना पाऊँ तब तक पूजू हे ब्रह्मश 9 श्री देव शास्त्र गुरु पूजन , वीतराग अरिहंत देव के पावन चरणों में वन्दन । द्वादशांग श्रुत श्री जिनवाणी जग कल्याणी का अर्चन ॥
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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