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________________ जैन पूजांजलि [१६७ जग में नहीं किसी का कोई जग मतलब का मीत है। भीतर तो है मायाचारी ऊपर झूठी प्रीत है ॥ तभी सार्थक जीवन होगा तभी सार्थक हो नर देह । अन्तर घट में जब बरसेगा पावन परम ज्ञान रस मेह ॥ पर से मोह नहीं होगा, होगा, निजात्मा से प्रति नेह । तब पायेंगे हम प्रखण्ड अविनाशी निज सुखमय शिव गेह । रक्षा-बन्धन पर्व धर्म की, रक्षा का त्यौहार महान । रक्षाबन्धन पर्व ज्ञान को, रक्षा का त्यौहार प्रधान ॥ रक्षा-बन्धन पर्व चरित की, रक्षा का त्यौहार महान । रक्षा-बन्धन पर्व आत्म की, रक्षा का त्योहार प्रधान ॥ श्री अकम्पनाचार्ग आदि मुनि सात शतक को करूं नमन । मुनि उपसर्ग निवारक विष्णु कुमार महा मुनि को वन्दन। ॐ ह्रीं श्री विष्णु कुमार एवं अकम्पनाचार्य आदि सप्त शतक मुनिभ्यो पूर्णाय॑म् निर्वपामीति स्वाहा। रक्षाबन्धन पर्व पर श्री मुनि पद उर धार । मन वच तन जो पूजते, पाते सौख्य अपार ॥ x इत्याशीर्वादः ४ जाप्य- ॐ ह्रीं श्री परम ऋषीश्वरेभ्यो नमः । श्री णमोकार मंत्र पजन ॐ णमो अरिहंताणं जप अरिहंतों का ध्यान करू । ॐ गमो सिद्धाणं जप कर सिद्धों का गुणगान करूं ॥ ॐ णमो प्रायरियाणं जप आचार्यों को नमन करू । ॐ नमो उवज्मायारणं जप उपाध्याय को नमन करूं ॥ णमो लोए सव्वसाहूणं जप सर्व साधुओं को वंदन । णमोकार का महा मंत्र जप मिथ्यातम को करूं वमन ॥
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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