SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६२] जैन पूजांजलि अब प्रभु चरण छोड़ कित जाऊ । ऐसी निर्मल बुद्धि प्रभो दो शुद्धातम को ध्याउ ॥ श्रद्धा सार । तीन लोक षट द्रव्यमयी है सात तत्व को नव पदार्थ छह लेश्या जानो, पंच महाव्रत उत्तम धार ॥ समिति गुप्ति चारित्र पाल कर तप संयम धारो श्रविकार । परम शुद्ध निज आत्म तत्त्व, आश्रय से हो जाओ भव पार ॥ उस वाणी को मेरा वन्दन, उसकी महिमा अपरम्पार । सदा वीर शासन की पावन, परम जयन्ती जय जयकार ॥ वर्धमान प्रतिवीर वीर की पूजन का है हर्ष अपार । काल लब्धि प्रभु मेरी आई, शेष रहा थोड़ा ॐ ह्रीं श्रीं सन्मति वीर जिनेन्द्राय अनर्घ्य पद प्राप्तये दिव्य ध्वनि प्रभु वीर की देती सौख्य अपार । श्रात्म ज्ञान की शक्ति से, खुले मोक्ष का द्वार ॥ इत्यार्शीवादः संसार ॥ अर्घ्यम् नि० । - ॐ ह्रीं श्री संपूर्ण द्वादशांगाय नमः । जाप्य - श्री रक्षा बन्धन पर्व पूजन जय अकम्पनाचार्य श्रादि सात सौ साधु मुनिव्रत बलि ने कर नरमेध यज्ञ उपसर्ग किया भीषण जय जय विष्णु कुमार महा मुनि ऋद्धि विक्रिया किया शीघ्र उपसर्ग निवारण वात्सल्य करुणा धारी । भारी ॥ के धारी । धारी ॥ रक्षाबन्धन पर्व मना मुनियों का जय जयकार हुआ । श्रावण शुक्ल पूणिमा के दिन घर घर मङ्गलचार हुना ॥ श्री मुनि चरण कमल मैं पाऊँ प्रभु सम्यक दर्शन भक्ति भाव से पूजन करके निज स्वरूप में रहूं मगन ॥ 1 ॐ ह्रीं श्री विष्णु कुमार एवं अकम्पनाचार्य आदि सप्त शतक मुनि अत्र अवतर अवतर संवौषट 1
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy