SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन पूजांजलि [१५६ आत्मिक रुचि हो तो अनंत सुख की है पावन साधना । परम शुद्ध चैतन्य ब्रह्म की सहज जगाती भावना ॥ भाग्यहीन नर रत्न स्वर्ण को जैसे प्राप्त नहीं करता। ध्यानहीन मुनि निज आतम का त्यों अनुभवन नहीं करता। शासन वीर जयन्ती पर जल चढ़ा वीर का ध्यान करूं। खिरी दिव्य ध्वनि प्रयन देशना सुन अपना कल्याण करू ॥ ___ॐ ह्रीं श्री सन्मति वीर जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम् निर्वामीति स्वाहा। विविध कल्पना उठती मन में, वे विकल्प कहलाते हैं। बाह्य पदार्थों में ममत्व मन के सङ्कल्प रुलाते हैं। शासन वीर जयन्ती पर चन्दन अर्पित कर ध्यान करूं । खिरी० ___ ॐ ह्रीं श्री सन्मति वीर जिनेन्द्राय भवाताप विनाशनाय चन्दनम् नि। अन्तरंग बहिरंग परिग्रह त्यागं, मैं निर्ग्रन्थ बनें । जीवन मरण मित्र परि, सुख दुख लाभ हानि में साम्य बनूं ॥ शासन वीर जयन्ती पर, कर अक्षत भेंट स्व ध्यान करूं। खिरी० ___ॐ ह्रीं श्री सन्मति वीर जिनेन्द्राय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतम् नि०। शुद्ध सिद्ध ज्ञानादिक गुणों से, मैं समृद्ध हूं देह प्रायाण । नित्य प्रसंख्यप्रदेशी निर्मल हूं प्रमूर्तिक महिमावान ॥ शासन वीर जयन्ती पर, कर भेंट पुष्प निज ध्यान करूं । खिरी० ॐ ह्रीं श्री सन्मति वीर जिनेन्द्राय कामवाण विध्वंसनाय पुष्पं नि । परम तेज हूं परम ज्ञान हूं परम पूर्ण हूं ब्रह्म स्वरूप । निरालम्ब हूं निविकार हूँ निश्चय से मैं परम अनूप ॥ शासन वीर जयन्ती पर नैवेद्य चढ़ा निज ध्यान करूं । खिरी० ॐ ह्रीं श्री सन्मतिवीर जिनेन्द्राय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् नि०। स्व पर प्रकाशक केवल ज्ञानमयी, निज मूर्ति प्रमूति महान् । चिदानन्द टंकोत्कीर्ण हूँ ज्ञान ज्ञय ज्ञाता भगवान् । शासन वीर जयन्ती पर दीप चढ़ा निज ध्यान करू । खिरी० ॐ ह्रीं श्री सन्मति वीर जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् नि।
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy