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________________ १५४] जन पूजांजलि जाप्य शुद्ध भाव ही मोक्ष मार्ग है इससे चलित नहीं होना । चलित हुए तो मुक्ति न होगी होगा कर्मभार ढोना ॥ अक्षय तृतिया के महत्व को यदि निज में प्रगटायेंगे । निश्चित ऐसा दिन आयेगा हम अक्षय फल पायेंगे । हे प्रभु आदिनाथ मङ्गलमय हम को भी ऐसा वर दो ॥ सम्यक् ज्ञान महान सूर्य का अन्तर में प्रकाश कर दो। ॐ ह्रीं श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ पद प्राप्तये पूर्णार्घम, नि० । अक्षय तृतीया पर्व को महिमा अपरम्पार । त्याग धर्म जो साधते हो जाते भव पार ॥ ४ इत्याशीर्वादः ४ ॐ ह्रीं श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय नमः । । श्री श्रुत पंचमी पूजन स्याद्वाद मय द्वादशांग युत माँ जिनवाणी कल्याणी । जो भी शरण हृदय से लेता हो जाता केवल ज्ञानी ॥ जय जय जय हितकारी शिव सुखकारी माता जय जय जय । कृपा तुम्हारी से ही हाता भेद ज्ञान का सूर्य उदय ॥ श्री धरसेनाचार्य कृपा से मिला परम जिन श्रुत का ज्ञान । भूतबली मुनि पुष्पदन्त ने षट्खंडाराम रचा महान ।। अंकलेश्वर में यह ग्रन्थ हुआ था पूर्ण आज के दिन । जिनवाणी लिपि बद्ध हुई थी पावन परम आज के दिन ॥ ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी दिवस जिन श्रुत का जय जयकार हुआ। श्रुत पंचमी पर्व पर श्री जिनवारणी का अवतार हुमा ॥ ॐ ह्रीं श्री परम श्र त पट् खण्डागम अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री परम श्रत षट् खण्डागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री परम श्रुत षट् खण्डागम अत्र मम् सन्निहितो भव भव वषट्। शुद्ध स्वानुभव जल धारा से यह जीवन पवित्र कर लू । साम्य भाव पीयूष पान कर जन्म जरामय दुःख हर लूं ॥
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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