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________________ १४६ ] जैन पूजजलि अपनी देह नहीं अपनी तो पर पदार्थ भी शुद्ध बुद्ध चिद्रूप त्रिकाली ध्रुव स्वभाव सपना है । ही अपना है । श्री महावीर जयन्ती लिया । पूजन महावीर की जन्म जयन्ती का दिन जग में है विख्यात । चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी को हुम्रा विश्व में नवल प्रभात ॥ कुण्डलपुर वैशाली नृप सिद्धार्थराजगृह जन्म माता विशला धन्य हो गईं वर्धमान रवि इन्द्रादिक ने मङ्गल गाये गिरि सुमेरु पर एक सहस्र आठ कलशों से क्षीरोदधि से तीन लोक में आनन्द छाया घर घर मङ्गलचार दशों दिशायें हुई सुगन्धित प्रभु का जय जयकार दुखी जगत के जीवों का प्रभु के द्वारा उपकार निज स्वभाव जप मोक्ष गये प्रभु सिद्ध स्वपद साकार हुआ । मैं भी प्रभु के जन्म महोत्सव पर पुलकित हो गुण गाऊँ । प्रष्ट द्रव्य से प्रभु चरणों की पूजन करके हर्षाऊ ॥ ॐ ही चैत्र शुक्ल त्रयोदश्याम् जन्म मङ्गल प्राप्त श्री महावोर जिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर संत्रीषट् । उदय कर किया हुआ । नर्तन । म्हवन || हुआ । हुआ ॥ हुप्रा । ॐ ह्रीं चैत्र शुक्ल त्रयोदश्याम् जन्म मङ्गल प्राप्त श्री महावीर जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । लेकर ॐ ह्रीं चैत्र शुक्ल त्रयोदश्याम् जन्म मङ्गल प्राप्त भी महावीर जिनेन्द्र अत्र मम् सन्निहितो भवभव वषट् । क्षीरोदधि का क्षीर वर्ण सम भाव नीर प्रभु चरणों में भेंट चढ़ाऊ परम शान्त महावीर के जन्म दिवस पर महावीर प्रभु महावीर के पथ पर चल कर महावीर सम बन जीवन को श्री महावीर ॐ ह्रीं चैत्र शुक्ल त्रयोदश्याम् जन्म मङ्गल प्राप्ताय जिनेन्द्र जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम निर्वपामीति स्वाहा । प्राऊ । पाऊ ॥ ध्याऊँ । जाऊं ॥
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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