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________________ जैन पूजांजलि [१४१ क्षमा सत्य संतोष सरलता मृदुता लघुत। नम्रता । ब्रम्हचर्य तप गुप्ति त्याग समता उज्जवलता उच्चता ॥ दीपावलि के पुण्य दिवस पर वर्धमान पूजन कर ले। महावीर अतिवीर वीर सन्मति प्रभु को वन्दन कर लूं। ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्ण अमावस्याम मोक्ष मङ्गल प्राप्ताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम निर्वपामीति स्वाहा । अमल अखण्ड अतुल अविनाशी निज चन्दन उर में घर लूँ। चारों गति का ताप मिटाऊँ निज पंचम गति आदर लू ॥दीपा० ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्ण अमावस्यान मोक्ष मङ्गल प्राप्ताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा । अजर अमर अक्षय अविकल अनुपम प्रभत पद उर धरलूं । भव सागर तर मुक्ति वधू से मैं पावन परिणय करलं ॥ दीपा० ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्ण अमावस्याम मोक्ष मङ्गल पण्डिताय श्रीवर्धमान जिनेन्द्राय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा । रूप गंध रस स्पर्श रहित निज शुद्ध पुष्प मन में भर लूं। कामवाण को व्यथा नाश कर मैं निष्काम रूप धर लूं ॥ दीपा० ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्ण अमावस्याम मोक्ष मङ्गल मण्डिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय कामवाण विध्वंसनाय पुष्पम, निर्वपामोति स्वाहा । प्रात्म शक्ति परिपूर्ण शुद्ध नैवेद्य भाव उर में धर लूं। चिर अतृप्ति का रोग नाश कर सहज तृप्त निज पद बरह्लादीपा० ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्ण अमावस्याम मोक्ष मङ्गन मण्डिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा । पूर्ण ज्ञान कैवल्य प्राप्ति हित जान दीप ज्योतित कर लू। मिथ्या भ्रम तम मोह नाश कर निज सम्यकत्व प्राप्त कर लदीपा० ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्ण अमावस्याम मोक्ष मङ्गल मण्डिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा ।
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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