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________________ पचम अध्याय विभिन्न अपेक्षानो से परमाणु पुदगल ७१ हो मक्ती है। "पद्रव्यम्पर्मता" में परमाणु-युद्गल की दिशायें न्यापित की गयी है, क्या उमी तरह धुरी की स्थापना की जा सकती है। इन विषय में विगेप लोज की पावश्यकता है। परमाणु मुद्गल की कम्पन आदि क्रिया ममित (नमिय) नया अनियमित भी हो सकती है। यहाँ यह नियमितता या अनियमितता क्षेप-नमय मापेस है। परमाणु-पुद्गल में निण्या या गति म्वत (विनमा) हो मक्ती है अयवा अन्य परमाणु-पुद्गल या वन्य-पुद्गल के मयोग में हो माती है। एक पुद्गल में दूसरे पुद्गल के मयोग-प्रयोग ने जिन ग्न्यिा एव गति की उत्पत्ति होती है, उसे विनमा क्त है । जीव के निमिन में जीनिवाार गति पृद्गन में होनी है, उने प्रायोगिर प्रिन्या व गति कहते है। लेकिन परमाणु-पुद्गल में जीव के निमित्त से कोई किया और गति नहीं हो सकती, क्योकि परमाणु-पुद्गल जीव द्वारा ग्रहण नहीं दिया जा मक्ता नया पुद्गल को ग्रहण क्येि विना पुद्ग में परिणमन कराने की शक्ति जीव में नहीं है। प्रत परमाण-पुद्गन में जो किया व गति होती है, वह विस्रमा ही होती परमाणु-पुद्गन की मिन्या और गति की तेजी कितनी होती है? कम्पन आदि मियानी की चाल के सम्बन्ध में कोई उल्लेख मूत्रा में अभी तक दप्टिगोचर नहीं हुआ है, लेकिन देशान्तरगामिनी निया यानी गति-क्रिया के सम्बन्ध में भगवतीनूत्र (१६ ८ ७) में कहा है कि परमाणु-पुद्गल लोक के पूर्व चरमान्त से पश्चिम चरमान्त,
SR No.010273
Book TitleJain Padarth Vigyan me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1960
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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