SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल यह नप्ट विनष्ट नहीं होता। जितने परमाण-पुदुगल है, उतने ही रहेगे, उनमें से एक भी, किसी भी कारण से, कम नहीं होगा और न किमीके द्वारा नष्ट हो सकेगा। वे जितने हैं, उतने ही रहेंगे। अवस्थित-अपेक्षा--कोई नवीन परमाणु-पुद्गल न स्वत बनेगा, न किसीके बनाये बनेगा। जितने परमाण-पुद्गल है, उस सख्या में एक भी वृद्धि, किसी भी कारण से, नही होगी। भूतकाल में भी कोई नया परमाणु नही बना था, वर्तमानकाल में भी कोई नया परमाणु नही बनता है और न भविष्यत् काल में कोई नया परमाणु वन सकेगा। अस्ति-अपेक्षा-परमाणु-पुद्गल "उत्पादव्यय ध्रौव्ययुक्त सत्" इस नियम का प्रतिपालक है, अतएव सत्-अस्ति है। केवल कल्पना नहीं है। परमाणु-पुद्गल विद्यमान है। रूप-अपेक्षा--परमाणु-पुद्गल रूपी है, अरूपी नहीं है, क्योकि इसमें वर्ण, रस, गन्ध तथा स्पर्श के भाव होते है तथा अन्य परमाणु के साथ बन्धन को प्राप्त होकर वह सस्थान भाव भी ग्रहण कर सकता है । वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श और संस्थान से ही रूप प्रस्फुटित होता है। ____ आकार-अपेक्षा-परमाणु-पुद्गल आकाररहित है, लेकिन निराकार व अरुपी नही है। यह मात्र माण्डलिक विन्दु ही कहा जा सकता है। ६ सस्थानो में, परमाणु-पुद्गल का कोई भी सस्थान नही होता है। परन्तु अन्य परमाणु या परमाणु के साथ सघवत होकर आकार का उत्पादक है। दो परमाणु मिलकर आयत आकार धारण कर सकते है।
SR No.010273
Book TitleJain Padarth Vigyan me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1960
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy