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________________ चतुर्थ अध्याय परमाणु-पुद्गल ५७ के साथ वन्य को प्राप्त होकर कायत्व ग्रहण कर सकता है। अत परमाणु पुद्गल को उपचार से काय वाला कहा जा सकता है। (५) परमाणु पुद्गल में स्पर्श, रस, गन्ध तथा वर्ण चारो ही होते हैं। लेकिन यह सस्थान-रहित है। इसके आकार को माण्डलिक विन्दु (Sphencal point) मात्र कहा जा सकता है। इसकी लम्वाई, चौडाई व गहराई कुछ नही है। द्वि-क्षेत्र प्रादेशिक वन्वन से ही सस्थान (इस दशा मे आयात) प्रारम्भ होता है। ६) परमाणु पुद्गल क्रिया करने में समर्थ है। यह देशान्तर प्रापिणी क्रिया तथा अन्यान्य क्रिया कर सकता है। लेकिन परमाणु पुद्गल की क्रियायें अनियत (Uncertain) हैं। (७) परमाणु पुद्गल स्वय न गलता है, न भिन्न ही होता है, न विखरता है और न गलन होकर, भिन्न होकर, विखर कर पूरण होता है, मिलता है। लेकिन दूसरे परमाणु या परमाणुओ के साथ मिलकर-समवाय को प्राप्त होकर-फिर भिन्न होता है, उस स्कन्धत्व को छोडकर अलग होता है। परमाणु पुद्गल आत्मभूत रूप मे गलन-मिलनकारी नहीं है लेकिन परमाणुओ का दल वन्धन-भेद को प्राप्त होता है। अत समवाय रूप में गलन-मिलनकारी है।
SR No.010273
Book TitleJain Padarth Vigyan me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1960
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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