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________________ जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल ५२ गुण कपाय, (१२) एक गुण तीखा, (१३) एक गुण उष्ण, (१४) एक गुण शीतल, (१५) एक गुण रूक्ष और (१६) एक गुण स्निग्ध । कारण अणु और अनन्त अणु I द्रव्य परमाणु को सामान्य रूप से "परमाणु पुद्गल" या सक्षेप में "परमाणु" कहा जाता है । सर्व पुद्गल निश्चयनय से ( From definite aspect ) परमाणु हैं । लेकिन परमाणु पुद्गल सदा परमाणु रूप में नही रहता है। अपने गलन - मिलन के स्वाभाविक धर्म के अनुसार दूसरे परमाणु या परमाणुत्रो के साथ, जीव के व्यापार से (प्रायोगिक) या विना जीव के व्यापार से (वैस्रसिक) - कितने ही नियमो के अनुवर्ती जो बन्ध होता है उससे उत्पन्न स्वरूप को स्कन्ध कहते हैं । इस स्कन्ध में वृद्ध कभी ‘भेदात्' किंवा 'सघात् भेदात् ' -- नियम फिर निज निज परमाणु स्वरूप हो सकता है । निज-निज के परमाणुओ का दल धनुवर्ती होकरवन्धन - अपेक्षा से परमाणु पुद्गलो को "कारण श्रणु" तथा भेद-प्रपेक्षा से " श्रनन्त श्रणु" ( Ultimate Particle) कहा जा सकता है । परमाणु पुद्गल की परिभाषा किसी प्रवीण श्राचार्य ने "परमाणु पुद्गल" की अनुपम सक्षिप्त परिभाषा इस प्रकार पदवद्ध की है। -
SR No.010273
Book TitleJain Padarth Vigyan me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1960
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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