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________________ २८ जैन पदार्य-विज्ञान में पुद्गल पुद्गल से, रूक्ष-स्पर्श पुद्गल का रूक्ष-स्पर्श पुद्गल से बन्धन होता है। स्पर्श-गुण के भेदो से पुद्गल के स्निग्ध तथा रूक्ष-गुण होते है। इन स्निग्ध-रूक्ष स्पर्श-गुणो में तारतम्यता होती है अर्थात् स्निग्ध-गुण की स्निग्धता-शक्ति में कमी-वेसी होती है। सर्व परमाणु पुद्गलो की स्निग्धता या रुक्षता एक समान नहीं होती है। अविभाग परिच्छेद शक्ति को 'गुण' व अश कहते है। पुद्गल परमाणु में स्निग्धता या रुक्षता की तीव्रता या माणता इस "निविभागी अश" के पूर्णक गुणनफलो से होती है। जैसे १ अश स्निग्धता, २ अश स्निग्धता, २५ अश स्निग्धता इत्यादि अनन्त अश तक । इम अश का भिन्न नहीं होता। इसलिए परमाणु पुद्गल में डेढ अश, २३ अश, ४५ अश इत्यादि स्निग्धता या रूक्षता नही होती है। उपर्युक्त तीन बन्धन योग्यता नियम तत्वार्थ सूत्र' के ३३॥३४॥ ३५वें सूत्रो में (पचम अध्याय) में अवस्थापित किये गये है। इन तीन बन्धन योग्यता नियमो के उपनियम या विश्लेषण, नियमो का विवेचन अन्य अध्याय में आगे होगा। वन्ध होने से दो या अधिक अनन्त तक परमाणु पुद्गल एक आकाश-प्रदेश में भी रह सकते है या दो प्रदेश मे या दो प्रदेश से अधिक असख्य प्रदेशो में अवगाह कर सकते है। लेकिन बन्धन प्राप्त परमाणु पुद्गल निज की संख्या से अधिक प्रदेश में अवगाह नही कर सकते। अनन्त परमाणुओ का परिप्राप्त वन्ध परिणामस्कन्ध असख्य प्रदेश से अधिक प्रदेशी नही हो सकता है।
SR No.010273
Book TitleJain Padarth Vigyan me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1960
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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