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________________ दूसरा अध्याय पुद्गल के लक्षणों का विश्लेषण ११ पर्याय व्यर होकर चूडी का आकार-पर्याय-उत्पन्न होता है । इनीमे पर्याय को उत्पादन-यय-भावी कहा जाता है । ढेले से चूडी होकर भी सुवर्णत्व ध्रुव रहता है। अपने स्वभाव को बिना छोडे, उत्पादव्यय-धोधमाहित, गुणात्मक, पर्यायमहित जो है उसे द्रव्य क्ने है। २ पुद्गल नित्य तथा अवस्थित है नित्य तथा अवस्थित यह दोनो गुण नभी द्रव्यों में युगपद् स्थायी भाव में रहते हैं। जिसके स्वभाव का व्यय नहीं हो तथा जो सर्वथा विनष्ट नही हो, वह नित्य है । जो मल्या में कमते या बढ़ने नहीं है, जो अनादि निधन है, जो सदा स्वम्वरूप में रहते हैं नया जो न दूसरे को अपने स्प में परिणमाते है । वे अवस्थित है। १-अपरित्यक्तस्वभावेनोत्पादव्ययध्रुवत्वसयुक्तम् । गुणवच्च सपर्याप यत्तद्रव्यमिति ध्रुवति ।। --प्रवचनसार अ० २ गाथा ३ २-तद्भावाच्ययं नित्यम् । तत्त्वार्यसूत्र अ० ५ सूत्र ३० ३-अवस्थित ग्रहणादन्यूनाधिकत्वमाविर्भाव्यते, अनादिनिधनेयत्ताभ्यां न स्वतत्व व्यभिचरन्ति । -तत्वार्यसूत्र अ०५ सूत्र ३ सिद्धिसेन गणि टीका
SR No.010273
Book TitleJain Padarth Vigyan me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1960
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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