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________________ भूमिका राय करती है। गतिमील द्रव्य जीव और पुद्गल जब स्थिर होना चाहते है तो स्थिरता प्राप्त करने में उदासीन सहारक स्थिर अधर्मास्तिकाय होती है। पापाग नव द्रव्यों को स्थान देता है। काल नव द्रव्यों पर वर्तन करता है-टनमें नये पुगने का भाव पैदा करता है। याध्यात्मिक दृष्टि से विचार करें तो गतिगीर पुदगर चचल जीव के प्रदेगी में धर्मास्तिवाल के महारे पहुंचता है । अधर्मास्तिवाय के महारे न्यिा होता है। प्राकागान्तिकाय के सहारे स्थान पाता है। काल के आधार से यिति प्राप्त करता है। यह वधन की प्रक्यिा है। मुक्ति की प्रक्रिया ठीक इसके विपरीत __ इस तरह यह प्रगट है कि मनार-बधन और ममार-मुक्ति की कडी पुद्गल के अस्तित्व के कारण है। पदार्य-विज्ञान की दृष्टि से पुद्गल का अध्ययन करना जिनना महत्वपूर्ण है उतना ही प्राध्यात्मिक दृष्टि ने उसका ज्ञान प्राप्त कग्ना परमावश्यक है। वनानिक दृष्टि में पुद्गल अनन्त शक्ति सम्पन्न है। प्राच्यात्मिक दृष्टि मे उसकी प्रामक्ति पोद्गलिक वधन का कारण है जो परम्परा भव-भ्रमण का कारण होता है। इन छोटी-मी पुस्तक में पुद्गल का जो विवेचन है वह दोनो दृप्टियों में अध्ययन करने में महायक होगा। भौतिकवादी वैज्ञानिक को यह जन-विज्ञान पुरम्मर पुद्गल विषयक गभीर जान देगा और यात्मवादी को नागवान पुद्गल के वास्तविक स्वम्प
SR No.010273
Book TitleJain Padarth Vigyan me Pudgal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1960
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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