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________________ ( 77 ) multiform and infinitely diversified aspects of reality which amounts to the acceptance of an "open" view of the universe with scope for unending change and discovery For reasons explained above, it seems to me that the ancient Indian Jaina philosophy has certain interesting resemblances to the probabilistic and statistical view of reality in monern times 1 1 'स्यात्' का अर्थ अपेक्षा कैसे ? क्या यह विधिलिङ्ग का प्रयोग नही है ? 'अस्तिवीरा वसुन्धरा' मे 'अस्ति' जैसे निपात् है वैसे ही स्यादवाद मे 'स्यात्' शब्द निपात है । यह विधिलिङ्ग का प्रयोग नही है । यह अनेक अर्थी का द्योतक है । उनमे एक अर्थ अपेक्षा भी है । 2 चेतन भी अनन्तवर्मा और अचेतन भी अनन्तधर्मा, फिर दोनो मे अन्तर क्या है ? 'सर्व सर्वात्मक' तो हो ही गया । धर्म दो प्रकार के होते हैं सामान्य और विशेष । विशेष धर्म के द्वारा द्रव्य का स्वतन्त्र अस्तित्व स्थापित होता है । चैतन्य एक विशेष धर्म है । वह चेतन में ही है, अचेतन मे नही है | चैतन्य की अपेक्षा से चेतन और अचेतन मे अत्यन्ताभाव है | इसलिए चेतन अचेतन से और अचेतन चेतन से स्वतन्त्र द्रव्य है । जो द्रव्य है वह अनन्तधर्मा है, फिर भी अपनी असाधारणतया के कारण उसमे 'सर्वं सर्वात्मक' के दोष का प्रसंग नही है । चेतन मे चैतन्य की सत्ता स्वाभाविक है पर-निरपेक्ष हैं । पुद्गल (अचेतन) मे वर्ण, गध, रस और स्पर्श ये स्वाभाविक गुण हैं-पर-निरपेक्ष हैं । चेतन और पुद्गल के सयोग से होने वाले जितने धर्म या व्यजन-पर्याय हैं, वे सब पर सापेक्ष हैं । पर-निरपेक्ष और पर-सापेक्ष ये दोनो पर्याय संयुक्त होकर द्रव्य को अनन्तधर्मा बनाते हैं । 3 नैयायिक आदि भी अवच्छेदक धर्म के द्वारा वस्तु के स्वरूप निश्चित करते हैं और स्यादवाद की प्रक्रिया में भी विशेष धर्म के द्वारा वस्तु के स्वरूप का निश्चय किया जाता है । तो फिर दोनो मे अन्तर क्या है ? दोनो मे निरपेक्षता सिद्ध होती है । स्यादवाद मे सापेक्षता होनी चाहिए । 'स्यात् अस्त्येव जीव. ' - चैतन्य धर्म की चैतन्य का अस्तित्व प्रदर्शित है, वही जीव का उसका स्वरूप है । प्रश्न हो सकता है कि यदि 1 पी सी महलनोविस का पूरा डाइलेक्टिका भाग 8, न प्रकाशित है । लेख 2, अपेक्षा से जीव है । इस वाक्य मे स्वरूप नही है, किन्तु नास्तित्व भी पराश्रित नास्तित्व जीव का स्वरूप The foundations of Statistics 15 जून 1954 स्वीट्जरलेन्ड मे
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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