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________________ प्रस्तुति जैन दर्शन आध्यात्मिक परम्परा का दर्शन है । सब दर्शनो को दो श्रेणियो मे विभक्त किया जा सकता है-श्राव्यात्मिक और बौद्धिक । आध्यात्मिक दर्शन स्व और वस्तु के साक्षात्कार या प्रत्यक्षीकरण की दिशा मे गतिशील रहे हैं। बौद्धिक दर्शन स्व और वस्तु से सवधित समस्याओ को बुद्धि से सुलझाते रहे हैं । आध्यात्मिक दर्शनो ने देखने पर अधिक बल दिया, इसलिए वे तर्क-परम्परा का सूत्रपात नही कर सके । बौद्धिक दर्शनो का अध्यात्म के प्रति अपेक्षाकृत कम आकर्षण रहा, इसलिए उनका ध्यान तकशास्त्र के विकास की और अधिक आकर्षित हुआ। તરસ્ત્રીય વિકાસને વેંદ્ધ, નૈયાયિ-વશેષિૌર મીમાસ અગ્રણી રહે हैं । मीमासक मनुष्य के अतीन्द्रियज्ञान को मान्य नहीं करते। न्याय और शेषिक दर्शन की पृष्ठभूमी मे अध्यात्म का वह विकसित रूप नहीं है जो साख्यदर्शन की पृष्ठभूमी मे है । वौद्ध दर्शन की पृष्ठभूमी पूरी की पूरी आध्यात्मिक है। जब तक भगवान बुद्ध और उनकी परम्परा के प्रत्यक्षदर्शी भिक्षु रहे तब तक बौद्ध परम्परा तर्कशास्त्र की ओर आकर्षित नहीं हुई । साधना का बल कम होता गया, प्रत्यक्षदर्शी भिक्षु कम होते गए, तब तकशास्त्र के प्रति झुकाव होता गया। जैन परम्परा मे तर्कशास्त्र का विकास बौद्धो के बाद हुआ । इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि बौद्धो की अपेक्षा जैन श्राचार्य अधिक समय तक प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं। प्रत्यक्षदर्शन की साधना कम होने पर ही हेतु या तर्क के प्रयोग की अधिक अपेक्षा होती है । मैं यह स्थापना नही कर रहा हूँ कि प्रत्यक्ष-द्रष्टा मुनियो की उपस्थिति मे हेतु या तर्क का कोई उपयोग नही होता, किन्तु यह कहना मुझे इष्ट है कि उसका उपयोग बहुत ही नगण्य होता है जैन दर्शन तक-परम्परा मे प्रवेश कर वाद और न्याय-वैशेषिक दर्शनो की कोटि मे आ गया, किन्तु वह अपनी आध्यात्मिक परम्परा को विस्मृत किए बिना नही रह सका। बौद्धो मे ध्यान-सम्प्रदाय की परम्परा तर्क से दूर रहकर अध्यात्म की दिशा मे चलती रही। जनो मे ऐसी कोई स्वतन्त्र परम्परा स्थापित नही हो सकी, फलत अध्यात्म और तक का मिलाजुला प्रयत्न चलता रहा। इस भूमिका मे जन दर्शन के तर्कशास्त्रीय सूत्रपात और विकास का मूल्याकन किया जा सकता है । भने इसी भूमिका को ध्यान मे रखकर उसका मूल्याकन किया है।
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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