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________________ ( 65 ) 4 उपनिषदो मे ‘स एष नेति नेति' के द्वारा परमार्य सत्ता को अनिर्वचनीय वतलाया गया है । आचारा॥ सूत्र मे बतलाया गया है कि प्रात्मा अपद है, इसलिए वह किसी पद के द्वारा वाच्य नही है ।22 भगवान बुद्ध ने भी आत्मा, परलोक प्रादि को अव्याकृत कहा है । द्रव्य के स्वभाव का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि यह अवाच्यता उसके एक धर्म से सापेक्ष है। दूसरे धर्म की हाष्ट से वह वाच्य भी है । अर्थ-पाय क्षणवर्ती और सूक्ष्म होने के कारण शब्द का विषय नहीं बनता। श्रत अर्थ-पर्याय की अपेक्षा से द्रव्य अवाच्य है । व्यजन-पर्याय दीर्घकालीन और स्थूल तथा सदृश-परिणाम-प्रवाह का जनक होने के कारण शब्द का विषय बनता है । अत व्यजन-पर्याय की अपेक्षा से द्रव्य वाच्य है। - इस चर्चा से यह समझा जा सकता है कि नयो की योजना का मूल आधार द्रव्य का मौलिक रूप और उसका पयाय-समूह है। ये नय न तो दूसरो के मतो का सकलन हैं और न ऐच्छिक विकल्प । 2 क्या 'पन्च्यापुत्र'- इसके लिए भी कोई नय है ? 'वन्ध्यापुत्र' - यह एक विकल्प है । कोई भी विकल्प अपेक्षाशून्य नहीं होता। असत् की हम कल्पना नही कर सकते। वघ्या असत् नही है और पुत्र भी असत् नही है । प्राकाश भी असत् नही है और कुसुम भी असत् नही है । ये योगज-विकल्प हैं । पुत्र एक सचाई है । उसकी अपेक्षा से 'वन्ध्यापुत्र' एक अभावात्मक विकल्प है। कुसुम एक सचाई है । उसके आधार पर 'श्राकाशकुसुम' एक अभावात्मक विकल्प है । वन्ध्या के पुत्र नही होता किन्तु वास्तव मे यदि पुत्र नही होता तो 'पन्ध्यापुत्र'यह विकल्प भी नही बनता। आकाश के कुसुम नही होता किन्तु कही भी यदि कुसुम नही होता तो 'आकाशकुसुम' यह विकल्प भी नही बनता। इसलिए ये भावसापेक्ष अभावात्मक विकल्प हैं । नैगम नय सकल्पग्राही होने के कारण इन उपचरित सत्यो की भी व्याख्या करता है। 22 आयारो 51139 अपयस्त पय पत्थि।
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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