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________________ ( 56 ) अतीतकालीन, वर्तमानकालीन और भविष्यकालीन जयपुर एक नहीं हो। सकते। लिगभेव से अयमेव मामने पहाड है। मामने पहाडी है। पहाड और पहाडी एक नहीं हो सकते । वचनमेद से अर्थभेद मनुष्य जा रहा है। मनुष्य जा रहे हैं। जहा अर्थभेद विवक्षित होता है वही काल आदि के द्वारा २८८ का भेद किया जाता है । इसीलिए यह अव्यवमाय निर्मित होता है कि जहा काल आदि कृत शब्दभेद हो वहा अर्थभेद होना ही चाहिए । સમિલ્ડ્રન समभिरुनय का अध्यवसाय गन्दनय से सूक्ष्म है । इसके अनुसार एक पायअर्थ मे अनेक वाचक-शब्दो का प्रयोग नही किया जा सकता। हम अर्थ के जिम पर्याय का वोध या प्रतिपादन करना चाहते है उसके लिए उसी पर्याय-प्रत्यायक काद का प्रयोग करते हैं । शब्दकोष मे एकार्थक या पर्यायवाची शब्दो को मान्यता प्राप्त है, किन्तु प्रस्तुत नय उन्हे मान्य नही करता। यह 14 इस सिद्धान्त की स्थापना करता है कि वाच्य-अर्य की भिन्नता हुए विना वाचक शब्द की भिन्नता नही हो सकती। ऐसे कोई भी दो शब्द नही हैं जो एक ही वाच्य-अर्थ के लिए प्रयुक्त किए जा सकते हो । दो भिन्न शब्दो का एक पाय-अर्थ के लिए प्रयोग करने पर विरोध प्राप्त होता है । दो दो की शक्ति समान नही होती। यदि उनकी शक्ति समान मानी जाए तो ये फिर दो नही होगे । उन्हें एक ही मानना होगा, इसलिए भिन्न-भिन्न वाचक शब्दो का प्रयोग भिन्न-भिन्न वाच्य-यों के आधार पर ही किया जा सकता है। प्रश्न उपस्थित होता है कि शब्द वस्तु (अर्थ) का धर्म नहीं है, क्योकि वह वस्तु से भिन्न है । शब्द की अर्थक्रिया वस्तु की अर्थक्रिया से भिन्न है । शब्द की उत्पत्ति का कारण वस्तु की उत्पत्ति के कारण से भिन्न है । गद और वस्तु मे उपाय-उपेयभाव सबंध है । शब्द के द्वारा वस्तु का बोध होता है इसलिए शब्द उपाय है और वस्तु उपय है । शब्द और वस्तु का अभेद-सबंध नही है तो फिर शब्द के भेद से वस्तु का भेद कसे माना जा सकता है ?
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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