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________________ ( 54 ) होगा । यदि काला रंग को५ का स्वरूप हो तो फिर सफेद कोपा नही हो सकता कौए के लाल माम, मफेद हड्डी और पीले पित्त को भी फिर काला मानना होगा। वस्तुत ऐसा नहीं है, अत काला । अपने स्वरूप मे काला है और कोत्रा अपने स्वरू५ मे कोया है । 5 सामानाधिकरण्य का प्रभाव काले रंग और कौए मे सामानाविकरण्यदो वर्मों का एक अधिकरण नही होता, क्योकि विभिन्न शक्तियुक्त पर्याय ही अपना अस्तित्व रखते हैं, द्रव्य कुछ नहीं है । यदि काले रंग की प्रधानता मे कौए को काला कहा जाए तो काले रंग की प्रधानता वाली कवलो को भी कोना कहना होगा। 6 विशेषण-विशेष्यभाव नहीं होता दो भिन्न पर्यायो मे विशेषण-विशेष्य का भाव मानने पर अव्यवस्था उत्पन्न होती है और अभिन्न पर्यायो मे विशेषणविशेष्यभाव होता नही । 7 ग्राह्य-प्राहकभाव नहीं होता जान के द्वारा अपवद्ध अर्थ का ग्रहण नही होता । यदि असव अर्थ का ग्रह माना जाए तो सभी पदार्यो का ग्रहण प्राप्त हो जाएगा । फिर ग्रहण की नियत व्यवस्था नही रहेगी। नान के द्वारा सबद अर्य का प्रहण भी नही होता, क्योकि ग्रहणकाल मे वह रहता ही नहीं। 8 पाच्य-पाचकभाव नहीं होता सवर-अर्थ शब्द का वाच्य नही होता, क्योकि उसके साथ सम्बन्ध ग्रहण किया जाता है तब शब्द-प्रयोगकाल मे वह अतीत हो जाता है । असबद्ध अर्थ को शब्द का वाच्य मानने पर अव्यवस्था होती है । अत असवद्ध अर्थ भी शब्द का पाच्य नहीं होता। अर्थ से शब्द की उत्पत्ति नहीं होती। उसकी उत्पत्ति तालु आदि से होती है, यह प्रत्यक्ष है । शब्द से अर्थ की उत्पत्ति नही होती। द की उत्पत्ति से पहले ही अर्य की उपलब्धि होती है। शब्द और अर्थ मे तादात्म्यसम्बन्ध भी नहीं है । शब्द भिन्न देश में रहता है और अर्य भिन्न देश मे । शब्द श्रीयोन्द्रियग्राह्य है और अर्थ अन्य इन्द्रियो से भी ग्राह्य है । इस अधिकरण और करण (इन्द्रिय) के भेद की स्थिति मे तादात्म्यसम्बन्ध हो नहीं सकता । यदि और अर्थ मे तादात्म्यसम्बन्ध माना जाए तो अग्नि शब्द के उच्चारण से मुह के जल जाने का प्रसा आता है। अर्थ की भाति विकल्प भी शब्द का वाच्य नही है। अर्थ को ८८ का वाच्य मानने पर जिन दोपो का उद्भव होता है, विकल्प को शब्द का वाच्य मानने पर भी उन्ही दोपो की प्रसक्ति होती है ।
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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