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________________ ( 150 ) कोण्डकुण्डपुर (कुडकुन्दपुर) पहा जाता हा हो । इनके पास नीलगिरि की पहाडी पर प्राचार्य कुन्दकुन्द की चर।। पादुकाए भी है। इनके पाच नाम थे- पचनन्दि, कुन्दकुन्द, वक्रग्रीव एलक श्री. पिन्छ । पअनन्दि दीक्षा ममय का नाम । 2 कुन्दन्द - गाव के कारण प्रचलित नाम । वक्री गर्दन कुछ टेडी होने के कारण प्रचलित नाम । 4 एलन । पिच्छ-विदेह क्षेत्र मे लोटन समय गस्ते मे मयूर पिच्छ के fજન ના ઘર પૃપિછ ની મત ડm નામ અનિતા या। माना जाता है कि ये च रणजटहि मे नपन्न थे। श्री. भूमि मे चार अगुन ऊपर चलने ये। इनके दीक्षागुरू जिन चन्द्र और शिक्षागुन कुमानिन्दिये । रे अहवाल हारा स्थापित (वी नि 593) नन्दि मघ के तीसरे प्रभावी प्राचार्य थे। इन्होने 84 पाडो (प्रामृत) की रचना की किन्तु आज केवल 12 पाइ ही उपलब्ध हैं। उनमे मे दमण पार पात्तिपा, मुत्तपाइ, बोवपाहु, भावपाड श्री. मोसपाहुइ ५. श्रुतसागर । की टीका भी उपलब्ध है। इनके दूसरे मुस्य ग्रन्थ है- समयसार, प्रवचनमा• पचास्तिकाय, नियममा याना आदि । इन्होने पट्सण्डागम अन्य के प्रथम तीन वण्डो ५२ वाद हा लोक प्रमाण परिकर्म' नाम की टीका भी लिपी थी। समयमार, प्रवचनमा. और पचास्तिकाय में न्याया-त्र की प्रारंभिक चर्चा प्राप्त है। १० कुमारनन्दि (ई० 776) ये चन्द्रनन्दि के निप्प थे। इनके शिष्य कात्तिनन्दि श्री. प्रति विमल चन्द्र थे। इन्होने 'वादन्याय' नाम का एक पन्य रचा था। ये कुन्दकुन्द के अन्वय के थे। ११ गुणरत्नसूरी (ई० 1400- 475) ये अपने काल के प्रभावक प्राचार्य श्री देव मुन्दरी के शिष्य थे। इनका विहा क्षेत्र गुजरात राजस्थान ·हा है । ये वादविद्या मे कुशल थे। इन्होने कियारत्नसमुच्चय, कर्म न्य, अवधू , आदि अन्य लिखे। उन्होने प्राचार्य हरिभद्रकृत पट्दर्शनसमुच्चय पर तक रहस्यदीपिका' नाम को टीका लिपी।
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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