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________________ प्रमाण के चार प्रकार 1 2 3 4 द्रव्य प्रसारण के दो प्रकार विभागनिष्पन्न के पाव प्रकार द्रव्य प्रमाण क्षेत्र प्रमाण काल प्रमाण भाव प्रमाण क्षेत्र प्रमाण 1 2 1. प्रदेश निष्पन्न (परमाणु, द्विप्रदेशिक स्कध आदि) 2 विभागनिष्पन्न | 1 2 3 4 1 2 ( 135 ) मान उन्मान अवमान इससे धान्य और रस (द्रव) वस्तुओ का माप किया जाता है । इसमे नगर के क्रम श्रादि का तोल किया जाता है । हाय आदि से किया जाने वाला भाप | काल प्रमाण के दो प्रकार 1 2 गण्य गणना प्रमाण प्रतिमान स्वर्ण, मरिण, मुक्ता श्रादि का माप के दो प्रकार प्रदेशनिष्पन्न ( एक प्रदेशावगाढ आदि) विभागनिष्पन्न (गुल प्रादि) भाव प्रमाण के तीन प्रकार 1 गुरण प्रभारण गुणद्रव्य का परिच्छेद करते हैं । श्रत यह प्रमाण है । 2 नय प्रमाण' । 3 संख्या प्रमाण । प्रदेशनिष्पन्न - - एक समय स्थितिक आदि । समय, वलिका, मुहूर्त आदि । વિભાાનિષ્પન્ન अनुयोगद्वार वृत्ति पत्र 212 एते च नया ज्ञानरूपास्ततो जीवगुरणत्वेन यद्यपि गुणप्रमाणेऽन्तवन्ति तथापि प्रत्यक्षादिप्रमाणेभ्यो नयरूपतामात्रेरण पृथक् प्रसिद्धत्वात् बहुविचारविपयत्वाज्जिनागमे प्रतिस्थानमुपयोगित्वाच्च जीवगुणप्रभारणात् पृथक्ता | अनुयोगद्वार, वृत्ति पत्र 224 નામસ્યાપનાવિવવિશ્વાનવિષયાત્ मरयाप्रमाणात् गुणप्रमारण पृयगुक्तम् अन्यथा सख्याया अपि गुणत्वाद् गुणप्रमाणे एवान्तर्भाव स्यादिति ।
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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