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________________ ( 121 ) प्रकार उन्होंने इन्द्रियानुभव तथा इन्द्रियानुभव-परतत्र मानस-विकल्प से स्वतन्त्र मानस-विकल्प की स्थापना कर अविनाभाव या व्याप्ति के निश्चय की समस्या को समीचीनरूप मे समाहित किया है । । अक्सिवादिता प्रत्येक प्रमाण की कसौटी है । विसवादी ज्ञान प्रमाण नहीं होता, फिर प्राप्त को अविसवादी या अवचक कहने का हेतु क्या है ? प्राप्त के वचन से होने वाला अर्य का सवेदन आगम है। जिसके वचन से अर्य का सवेदन हुआ है वह व्यक्ति यदि प्राप्त है अविसवादी वचन का प्रयोक्ता है, तो उसका वचन भी प्रमाण होगा। यदि वह व्यक्ति विसवादी वचन का प्रयोक्ता है तो उसका वचन प्रमाण नही होगा। जो दूसरे को बता रहा है उसे यथार्थ ज्ञान होना चाहिए और उस ज्ञान के अनुसार ही उसका वचन होना चाहिए । प्राप्तत्व की कसौटी है यथार्य ज्ञान और यथार्थ वचन । अविसवादिता प्रत्येक प्रमाण की कसौटी है, पर जब हम एक व्यक्ति के वचन को प्रमाण मान लेते हैं वहा हम स्वयं पर निर्भर नही रहते, उस पर निर्भर हो जाते हैं। इन्द्रियानुभव मे हम इन्द्रियों पर निर्भर होते हैं। उसमे इन्द्रियो की अविसवादकता अनिवार्यत अपेक्षित है, पर वह स्वयं से भिन्न नही है । आगम मे अविसवादिता दूसरे व्यक्ति से जुडी रहती है, इसलिए दूसरे व्यक्ति की प्रामाणिकता मुख्य रहती है । इसीलिए प्राप्त के साथ 'अविसवादी' या 'अवचक' विशेष जोडा जाता है। 2 श्राप्तत्व का निर्णय कसे होगा ? एक व्यक्ति एक विषय मे प्राप्त हो सकता है और दूसरे विषय मे अनाप्त, फिर उसे प्राप्त माने या अनाप्त ? श्राप्तत्व को हम सीमा मे नही बाध सकते। जहा-जहा अविसवादिता या अवचकता है वहा-वहा प्राप्तत्व है। जहा विसवादिता या वचकता है वहा-वहा आतत्व नही हो सकता । तर्क के धरातल पर हम किसी भी लौकिक पुरुष को सार्वभौम प्राप्त नही मान सकते। 3 तादात्म्यमूलक उदाहरण दें । पूर्वापरत्व के उदाहरण मे क्या अन्तर है, वह समझना चाहता हु । अविनाभाव या व्याप्ति का आधार केवल तादात्म्य सम्बन्ध ही नही है, श्रानन्तर्य सम्बन्ध भी उसका प्राधार बनता है। रविवार और सोमवार मे तादात्म्य सम्बन्ध नही है। सोमवार रविवार से उत्पन्न नही होता, इसलिए उसका रविवार से तदुत्पत्ति सम्बन्ध भी नहीं है, किन्तु सोमवार रविवार के अनन्तर ही होता है,
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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