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________________ ( 109 ) साध्य - कोटि की प्रतिज्ञा साधन के द्वारा सिद्ध-कोटि मे आ जाती है, वह निगमन है, जैसे इसलिए पर्वत अग्निमान् है । नैयायिक इस पचावयवप्रयोग को स्वीकार करते है । उनके अनुसार इस श्रवयवप्रयोगात्मक अनुमान को पचावयव वाक्य, महावाक्य अथवा न्यायप्रयोग कहा जाता है | X X X 1 हम जानना चाहते हैं कि संख्या के विषय मे जैन परम्परा का अभिमत क्या है ? कुछ विचारक जैन दर्शन को परमसाख्य कहते हैं । जैनो का तत्वचिन्तन संख्या-प्रधान रहा है, इसलिए यह कहा भी जा सकता है । श्रागमसाहित्य चार भागो मे विभक्त है 13 1 द्रव्यानुयोग - द्रव्यमीमासा, दर्शन | ? चरणानुयोग आचारमीमासा । 3 धर्मकयानुयोग हण्टान्त, उपमा और उदाहरण 1 4 गणितानुयोग गणितशास्त्र । द्रव्यमीमासा और कर्मशास्त्र मे गणित का बहुत उपयोग किया गया है । पदार्थ को जानने के चौदह उपाय निर्दिष्ट हैं 13 1 निर्देश नाम निर्देश, स्वरूप निश्चय अधिकारी । 2 स्वामित्व 3 साधन कारण। 4 अधिकरण आधार । 5 स्थिति काल-मर्यादा । 6 विधान प्रकार । 7 सत् अस्तित्व, सद्भाव | 8 संख्या - गणना, पदार्थ के परिमाण की उपलब्धि का भेदलक्षण वाला सावन । 9 क्षेत्र आश्रयस्थान 1 10 स्पर्शन पावर्ती आकाश-प्रदेशो का स्पर्श । 11 फाल अवधि 12 अन्तर दो अवस्थाश्री का मध्यवर्ती अन्तराल | तत्त्वार्यं सूत्र, 1/7, 8
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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