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________________ ( 107 ) 'सब कुछ क्षणिक है क्योकि सत् है' इस हेतु का सपक्ष नही हो सकता । वौद्ध) के अनुसार अक्षणिक कुछ भी नही है तब सपक्ष कसे होगा ? यह प्रदेश अग्निमान् है क्योकि धूम है, जैसे रसोई घर । इस बहिव्याप्ति मे सपक्ष हो सकता है। धूम जैसे निर्दिष्ट प्रदेश मे है वैसे ही रसोई घर मे भी है। अन्तव्याप्ति मे समग्र वस्तु का समाहार हो जाता है, शेष कुछ बचता ही नही । इसलिए 'सपक्षसत्व' हेतु का लक्षण नही हो सकता। विपक्ष मे हेतु का असत्व होना ही अन्यथानुपपत्ति है । यही हेतु का एक मात्र लक्षण है। जन तक-परपरा मे यह लक्षण सबके द्वारा समर्थित और मान्य हेतु के प्रकार : जन तर्क-परपरा मे अविनाभाव का संबंध केवल तादात्म्य और तदुत्पत्ति से ही नही है । अविनाभाव के दो रूप हैं सहभाव और क्रमभाव । सहभाव तादात्म्यमूलक भी होता है और तादात्म्य के बिना भी होता है । इसी प्रकार क्रममाव कार्यकारणभावमूलक भी होता है और कार्य-कारणभाव के बिना भी होता है। अविनाभाव के इस व्यापक स्वरूप के आधार पर हेतु के स्वभाव, व्याप्य, व्यापक, कार्य, कारण, पूर्वच र, उत्तरचर, सहचर ये आठ विकल्प माने गए । इनमे कुछ उपलब्धि हेतु हैं और कुछ अनुपलब्धि हेतु । उपलब्धि हेतु विधि और प्रतिषेध (भाव और अमाव) दोनो को सिद्ध करते हैं । अनुपलब्धि हेतु भी उन दोनो को सिद्ध करते हैं। इनकी विस्तृत चर्चा के लिए प्रमाणनयतत्वालोक 3154-109, या 'भिक्षुन्यायकणिका (परिशिष्ट पहला) द्रष्टव्य है'। अवयव-प्रयोग __ जैन आचार्यों ने प्रत्येक विषय पर अनेकान्तदृष्टि से विचार किया है । नय के विषय मे उनका दृष्टिकोण है कि श्रोता की योग्यता के अनुसार नयो का प्रतिपादन करना चाहिए । अवयव-प्रयोग के विषय में भी उनका यही दृष्टिकोर है । ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीनकाल मे उदाहरण या दृष्टान्त का प्रयोग प्रचुरता से किया जाता था। प्रबुद्ध श्रोता के लिए हेतु का भी प्रयोग मान्य था। नियुक्तिकार भद्रपाहु ने लिखा है जिन-वचन स्वयसिद्ध है, फिर भी उभे समझाने के लिए अपरिणत श्रोता के लिए उदाहरण का प्रयोग करना चाहिए । श्रोता यदि अपरिणत हो तो हेतु का प्रयोग भी किया जा सकता है । 11. दशवकालिक नियुक्ति, गाथा 49 जिरायण सिद्ध चेव, मण्याए कत्यई उदाहरण । પ્રાસન્ન = સીયાર, હેક્કવિ હૃત્તિ મોળા ll
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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