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________________ श्रेपन किया। man mano a manana तजौ सबै आमिष अधखानि, या सम पाप न और प्रमानि । त्यागौ सहत जु मदिरा शमा, मधू दोउको नाम निरभृमा । अर जिन वस्तुनिमें मधूदोष, सो सब तजहु पापगण पोष । काकिब- और मुरब्बा आदि, इनहिं खाहिं तिनको प्रतवादि । मधु मदिरा पल जे नर गहे, ते शुभगतिने दूरहिं रहें। नर्कनिगोद माहिं दुख सहें, अतुल अपार त्रासना ३ लहें । साः तीन मकार धिकार, मद्य मास मधु आप अपार । ये तीनोंमो पञ्च कुफला, तीन पाच ये आठों मला ।। इन आठोंमें अगणित प्रसा, उपजे मरण करें परबसा। जीव अनन्ता बहुत निगोद, तातें कृत कारित अनुमोद ।। इनको त्याग किये वसु मूल, गुणा होहिं अघतें प्रतिकूल । पांच उदम्बर तीन मकार, इनसें पाप न और प्रकार ।। बार बार इनकों विकार, जो त्यागै सो धन्य विवार । इन आठनसें चौदा और, भखै सु पावै अति दुख-ठौर 1800 बहुत अभक्षन में बाईस, मुख्य कहे त्यागें प्रतईस । मोला नाम बड़ा जु बखानि,जीवरासि भरिया दुखखानि ॥ अणछाण्यां जलके बंधाण, दोष करे जैसे संघाण । भलै पाप लागे अधिकाय, तातें त्याग करौ सुखदाय ।। पोक बड़ामे दूषण बड़ा, खाहिं तिके आणे मति जड़ा। दही महीमें बिदल जु वस्तु खाये सुक्रत जाय समस्त ।। तुरत पवेन्द्री उपजे तहा, बिदल दही मुखमें ले जहां। अन्न मसर मूंग चणकादि, मोठ उड़द मदर तूरादि । भर मेवा पिस्ताजु बिदाम, चारोली मादिक अति नाम ।
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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