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________________ परिचय तथा वर्गीकरण उन्नीसवीं शती के उपरिलिखित अनूदित प्रबन्धकाव्यों के अतिरिक्त शान्तिनाथ पुराण' (सेवाराम -१८३४), नागकुमार चरित' (नथमल बिलाला–१८३४), जीवंधर चरित (नथमल बिलाला-१८३५) आदि अनूदित प्रबन्ध उल्लेखनीय हैं। ऊपर आलोच्य रचनाओं का संक्षेप में परिचय दिया गया है । विवेच्यकाल में मौलिक और अनूदित, दोनों प्रकार के प्रबन्धकाव्यों का प्रणयन हुआ है । इन काव्यों के सृजन की दृष्टि से उन्नीसवीं शती की अपेक्षा अठारहवीं शती अधिक महत्त्वशालिनी रही। इन प्रबन्धों में महाकाव्य संख्या में थोड़े है, एकार्थकाव्य कुछ अधिक और खण्डकाव्य सबसे अधिक । (ख) वर्गीकरण विवेच्य प्रबन्धकाव्यों के परिचय के अनन्तर हम उक्त प्रबन्धकाव्यों के वर्गीकरण की धरा पर आ खड़े होते हैं । वर्गीकरण के लिए कोई प्रस्थापित मानदण्ड नहीं है । यह तो अध्ययन की सुविधा एवं सरलता के लिए किया गया है। इससे रचनाओं के स्वरूप पर भी थोड़ा प्रकाश पड़ता है, जिससे उनके मूल्यांकन की कुछ रेखाएँ भी उभर आयी हैं। जैसे आलोच्य प्रबन्धकाव्य अनेक हैं वैसे ही उनमें नामकरण, विषय, काव्यरूप, शैली आदि की दृष्टि से भी विविधता और भिन्नता परिलक्षित होती है ; अतएव उनका वर्गीकरण किया जाना अनिवार्य है। वर्गीकरण के चार आधार बिन्दु ये हैं : १. नामकरण २. विषय १. जैन मंदिर तिजारा (अलवर-राजस्थान)। २. जैन मंदिर धूलियागंज, आगरा। ३. जैन मंदिर चौराहे का, बेलनगंज, आगरा ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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