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________________ ६६ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन वर्द्धमान पुराण इस काव्य की रचना कवि नवलसाह ने अपने पिता की सहायता से सकलकीति कृत 'महावीर पुराण' के आधार पर' संवत् १८२५ में की।' यह काव्य १६ अधिकारों में विभक्त है । आरम्भ के ६ अधिकारों में भगवान महावीर (जिन्हें वर्द्धमान भी कहा जाता है) के पूर्व भवों का विस्तार से वर्णन है और शेष १० अधिकारों में उनके वर्तमान जीवन का चित्रांकन हुआ है। प्रस्तुत कृति में वर्णनों की बहुलता है। उन वर्णनों में कहीं-कहीं नीरसता का भी आभास मिलता है। जैन धर्म एवं दर्शन के अनेक तत्त्वों का स्थल-स्थल पर समावेश है। भावानुकूल भाषा इस रचना की एक विशेषता है, जो कवि के भाषाधिकार को प्रगट करती है। छन्द-विधान में कवि को प्रभूत सफलता मिली है। प्रत्येक अधिकार का आरम्भ 'दोहा' से, निर्वाह 'चौपई से और अन्त प्रायः 'गीता' छन्द से हुआ है। वरांग चरित्र (पाण्डे लालचन्द कृत) पाण्डे लालचन्द कृत 'वरांग चरित्र' की रचना संवत् १८२७ में हुई। १. श्री दिगम्बर जैन मंदिर, चौराहा बेलनगंज, आगरा के शास्त्र भंडार से प्राप्त हस्तलिखित प्रति । २. कह्यो स्तवन भाषा जोरि । नवलसाह मद तजि मन मोरि ॥ सकलकीर्ति उपदेस प्रमान । पिता, पुत्र मिलि रचिउ पुरान ॥ -वद्ध मान पुराण, पद्य सं० ३१६, अधिकार १६, पृष्ठ ३१० । ३. वही, पद्य संख्या ३३१, अधिकार १६, पृष्ठ ३१२ । १. जैन साहित्य शोध संस्थान, आगरा से प्राप्त हस्तलिखित प्रति । ५. संवत् अष्टादस सत जान । ऊपर सत्ताईस प्रमान । -वरांग चरित्र, पद्य १००, सर्ग १२, पृष्ठ ८४।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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