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________________ ( १० ) जैन साहित्य की यह परम्परा रही है कि यह लोक तत्त्वों को आत्मसात् करके चला है और इस परम्परा का अनुपालन आलोच्य कृतियों में भी मिलता है; फिर भी काव्य-विषयक नवीन मान्यताओं के साथ-साथ रीतिकाल में विविध शैलियों के प्रबन्धकाव्यों का प्रणयन युगीन साहित्य इतिहास को जैन कवियों की नयी देन है । जो हो, इन ग्रन्थों का अध्ययन करते समय मेरा सम्पर्क परम्परा और नवीनता, दोनों से हुआ है और विषय की सीमाओं में मैंने अनेक परिपार्श्वों का दिग्दर्शन कराते हुए अपने शोधप्रबन्ध को आठ अध्यायों में व्यवस्थित किया है । इनके आरम्भ में भूमिका और अन्त में उपसंहार है । भूमिका में अपने अध्ययन की पृष्ठभूमि और उसका सार प्रस्तुत किया गया है । उसमें उन बातों का भी परिचय देने का प्रयत्न किया है, जो मूल प्रबन्ध में समाविष्ट नहीं हो सकती थीं । पहले अध्याय में युग की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं साहित्यिक अवस्थाओं का उल्लेख किया गया है; साथ ही इन विभिन्न अव स्थाओं को आलोच्यकाव्यों के परिपार्श्व में भी देखा गया है। दूसरे अध्याय में रचनाओं का परिचय दिया गया है। परिचय के अन्तर्गत प्रत्येक रचना के सम्बन्ध में यथासम्भव पूर्ण जानकारी दे दी गयी है, यथा-रचना का प्राप्ति-स्थान, नाम, काल और उसकी परिचयात्मक विशेषताएँ आदि । परिचय के अनन्तर नामकरण, विषय, काव्यरूप आदि के आधार पर रचनाओं का वर्गीकरण किया गया है। तीसरे अध्याय में प्रबन्धत्व की परीक्षा की गयी है और कृतियों के कथानक - स्रोत पर विचार किया गया है। चौथे अध्याय में पात्रों को वर्गीकृत करते हुए उनका चरित्र चित्रण किया गया है । पाँचवें अध्याय में प्रबन्धकारों के रस सम्बन्धी दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए काव्यों में विविध रसों की योजना पर प्रकाश डाला गया है । छठे अध्याय में काव्यों के नैतिक, धार्मिक एवं दार्शनिक क्षितिज को विचार का विषय बनाया गया है। सातवें अध्याय में उनकी भाषा-शैली की विवेचना की गयी है । आठवें अध्याय में कवियों के लक्ष्य - संधान को निरूपित किया गया है । इस हेतु रचनाओं को कुछ वर्गों में रख कर उनके उद्देश्य की मीमांसा की गयी है । उपसंहार में अध्ययन से सम्बन्धित उपलब्धियों पर विचार-विमर्श
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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