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________________ ७१ परिचय और वर्गीकरण यह एक गेय काव्य है, जिसमें संगीत की व्यापक भूमिका प्रस्तुत है । काव्य की भाषा ब्रजभाषा है, जिसमें स्थल-स्थल पर राजस्थानी का पुट भी दिखलायी पड़ता है। चेतन कर्म चरित्र यह भैया भगवतीदास का २६६ पद्यों का एक रूपकात्मक प्रबन्धकाव्य है। इसकी रचना विक्रम संवत् १७३६ में हुई। इसमें चेतन और कर्म जैसे अमूर्त तत्त्वों का मूर्तीकरण कर उनका विशद चरित्रांकन किया गया है। काव्य से यह ध्वनित है कि जब तक चेतन (आत्मा) पर कर्मों का आवरण रहता है, तब तक वह सांसारिक माया-जाल से विमुक्त नहीं हो सकता । आत्म-स्वातंत्र्य का अभिलाषी चेतन कर्म वर्गणाओं को जीत लेने पर ही मोक्षपद पर आसीन हो सकता है।' इस रूपक काव्य में आत्मा के श्रेय और प्रेय पर विशेष कौशल से प्रकाश डाला गया है । कल्पनायुक्त काव्यात्मक वर्णनों के संयोग से काव्य में रमणीयता उभर उठी है। यह शान्त रस पर्यवसायी वीर रसात्मक काव्य है । सहज अलकार, उक्ति-चमत्कार और सरस संवादों की दृष्टि से कृति सुन्दर है। यह मूलत: दोहा-चौपई छन्द में रचित है। कुछ स्थलों पर सोरठा, पद्धरी, बेसरी, करिखा, मरहठा आदि छन्दों का भी प्रयोग हुआ है। इसमें १. 'ब्रह्मविलास' में भैया भगवतीदास की छोटी-बड़ी ६७ रचनाओं का संग्रह है । उसी में 'चेतन कर्म चरित्र' (पृष्ठ ५५ से ८४ तक) संगृहीत है । २. चेतन कर्म चरित्र, पद्य २६६, पृष्ठ ८४ । ३. ज्ञान दरश चारित भंडार । तू शिवनायक तू शिव सार । तू सब कर्म जीत शिव होय । तेरी महिमा बरने कोय ॥ -चेतन कर्म चरित्र, पद्य २६१, पृष्ठ ८४ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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