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________________ परिचय और वर्गीकरण ६७ भूधरदास, 'नेमीश्वर रास' के रचयिता नेमिचन्द्र, 'सीता चरित' के प्रणेता रामचन्द्र 'बालक' तथा अनेक श्रेष्ठ खण्डकाव्यों को रूपायित करने वाले विनोदीलाल, भारामल्ल, भैया भगवतीदास, आसकरण, अजयराज पाटनी आदि कवियों को जन्म देने का श्रेय इसी शताब्दी को है। इस समय के प्रमुख प्रबन्धकाव्यों का परिचय द्रष्टव्य है : सीता चरित यह कवि रामचन्द्र 'बालक' की एक उत्कृष्ट प्रबन्धकृति है। इसकी रचना विक्रम संवत् १७१३ में हुई। अपनी कतिपय विशेषताओं के कारण यह महाकाव्य की समता का काव्य है । इसमें ३६०० पद्य हैं। रचना सर्गबद्ध न होते हुए भी सर्गबद्ध रचनाओं से श्रेष्ठ है । वाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामचरितमानस की तुलना में इसका कथानक अनेक प्रसंगों और विस्तारों में नवीनता लिये हुए है। प्रस्तुत प्रबन्धकाव्य में सती सीता का बहुमुखी चारित्रिक विकास दिखाना और उसके सतीत्व की गरिमा पर प्रकाश डालना ही कवि का मुख्य लक्ष्य रहा है । अन्य पात्रों के चरित्र में भी उन उदात्त गुणों का समन्वय मिलता है, जिनसे उनके चरित्र की महत्ता प्रकट होती है। संक्षेप में मानव-मनोभावों का ऐसा हृदयस्पर्शी विश्लेषण, वस्तु-व्यापार वर्णनों का ऐसा मनोहार्य, करुण, वीर और शान्त रस का ऐसा उन्मेष तथा भाषा-शैली की ऐसी सशक्तता बहुत कम कृतियों में देखने को मिलती है। श्रेष्ठ प्रबन्धकाव्यों की श्रेणी में 'सीता चरित' काव्य अपना विशिष्ट स्थान रखता है। .. दिगम्बर जैन मन्दिर, वासन दरवाजा, भरतपुर (राजस्थान) से प्राप्त हस्तलिखित प्रति। २. संवत सतरह तेरोसरे, मगसिर ग्रन्थ समापति करे । -सीता चरित, अन्तिम पृष्ठ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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