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________________ प्राक्कथन हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में जो महत्त्व संस्कृत और प्राकृत भाषाओं का है, वही ब्रजभाषा का भी है। सोलहवीं शताब्दी से पहले ही ब्रजभाषा का रूप तैयार हो चुका था। कबीर का ब्रजभाषा-प्रयोग इसका प्रमाण है और यह कथन 'सूर-पूर्व-ब्रजभाषा' से भी समर्थित हो जाता है । सत्तरह, अठारह और उन्नीसवीं शताब्दी में तो ब्रजभाषा की दुन्दुभि समस्त देश में बज गई थी। यही कारण है कि ब्रजभाषा का साहित्य जिस प्रकार उत्तरी भारत में रचा गया, उसी प्रकार दक्षिणी और पूर्वी भारत में भी। असम के सुदूर प्रदेश में गद्य और पद्य दोनों में ही ब्रजभाषा साहित्य की सृष्टि हुई। इसमें कोई सन्देह नहीं कि गद्य की अपेक्षा पद्य ही ब्रजभाषा की गोद में अधिक फूलाफला। दक्षिण की दक्खिनी हिन्दी के साहित्य को भी ब्रजभाषा-प्रयोगों से बड़ी प्रेरणा मिली। राजस्थान, गुजरात, पंजाब आदि प्रदेशों में भी ब्रजभाषा का बोलवाला रहा। इसका कारण चाहे पुष्टि सम्प्रदाय के प्रचार और प्रसार को माना जाय अथवा तत्कालीन काव्य-प्रवृत्ति को, जिसमें ब्रजभाषा समाहत हुई। कहने की आवश्यकता नहीं कि इन शताब्दियों के कवियों ने ब्रजभाषा में काव्य-सृष्टि को अपना गौरव माना और इस गौरव की उपलब्धि के प्रयत्न में जाति-पांति और सम्प्रदाय का भेद एक बड़ी सीमा तक उपेक्षित रहा। इसका प्रमाण डिंगल के कवियों की ब्रजभाषा-रचनाएँ तो हैं ही, जैन कवियों की रचनाएँ भी हैं-उन जैन कवियों की, जो साहित्य-कला के क्षेत्र में अनुकरण करते हुए भी अनुकरणीय काम कर गये हैं। उन कवियों ने सस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, ब्रजभाषा, राजस्थानी, गुजराती आदि अनेक भाषाओं में पूर्ण तल्लीनता से सरस्वती की सेवा की है । अतएव उनकी सारस्वत उपलब्धियाँ अनुपेक्षणीय ही नहीं महनीय भी हैं। महनीयता की खोज जितनी सरल दिखाई दे सकती है, वास्तव में उतनी है नहीं। मैं इस बात को अपने प्रिय शिष्य डॉ० लालचन्द जैन के सन्दर्भ में अपने निजी अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ। डॉ० जैन को मैंने पीएच० डी० की उपाधि के लिए-'जैन कवियों के अजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन' विषय तो दे दिया और उन्होंने उसे सोल्लास स्वीकार भी कर लिया, किन्तु
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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