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________________ ५४ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन साहित्य ___ आलोच्यकाल में विविध भाषाओं में विपुल साहित्य की सृष्टि हुई है । हिन्दी के अतिरिक्त संस्कृत, फारसी, उर्दू, बगला, मराठी, गुजराती, राजस्थानी, पंजाबी, कन्नड़, तमिल, तेलगू और मलयालम आदि भाषाओं में भी गद्य और पद्य में महत्त्वपूर्ण साहित्य का सृजन हुआ । कलात्मक उपलब्धि, भाषा-विकास, प्रेम और शृङ्गार के सरस चित्रण, भक्ति और वैराग्य के मधुर स्वर, सामाजिक परिष्कार एवं देश-प्रेम की मधुमय गूज, दार्शनिक तत्त्वों के निरूपण, धार्मिक जाग्रति, प्रशस्ति गान एवं ऐतिहासिक शोध आदि अनेक दृष्टियों से यह साहित्य बहुमूल्य और उपादेय है । तत्कालीन अधिकांश साहित्यसर्जना का श्रेय उन सम्राटों, नवाबों, राजा-महाराजाओं, सामन्तों, जागीरदारों, मनसबदारों आदि को है, जिनके आश्रय में इस साहित्य का सृजन हुआ; और श्रेय उन प्रतिभासम्पन्न स्वतंत्र कवियों, कलाकारों, संतों एवं मनीषियों को भी कम नहीं है, जो सर्व प्रकारेण सर्व बन्धनों से विमुक्त रहकर, जन-जीवन में घुल-मिलकर, समाज के जर्जरित जीवन में प्राण फूंकने और मानवत्व की प्रतिष्ठा के निमित्त लोक-मंगलोन्मुख दृष्टि से जीवन भर साहित्य-साधना में लीन रहे। हिन्दी भाषा तथा साहित्य इस युग में अन्य भाषाओं की अपेक्षा हिन्दी में सर्वाधिक साहित्य की रचना हुई । गद्य के क्षेत्र में ब्रजभाषा और खड़ी बोली मिश्रित ब्रजभाषा दोनों का ही समुचित विकास हुआ और पद्य के क्षेत्र में ब्रजभाषा का विकास चरमोत्कर्ष पर पहुंचा। इस काल में अलंकार, रस, ध्वनि, गुण, नायिकाभेद आदि रीति-ग्रन्थों का प्रणयन काव्य-शास्त्रीय पद्धति के आधार पर बहुलता से हुआ; अतः यह काल प्रमुखतः 'रीतिकाल' कहलाया। चमत्कार-निरूपण, उक्ति-वैचित्र्य एवं कलात्मक उत्कर्ष के आधिक्य के कारण कतिपय विद्वानों ने इस काल को 'कलाकाल' की संज्ञा दी और शृंगार रस के अतिरेक की दृष्टि से कुछ आलोचकों ने इसे 'शृगारकाल' के नाम से अभिहित किया जाना अधिक समीचीन समझा।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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