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________________ युग-मीमांसा भवन एवं उद्यान, पेशवाओं द्वारा कुछ तीर्थों पर बनाये गये कतिपय हिन्दू मन्दिर आदि । आलोच्य प्रबन्धकाव्य और स्थापत्यकला स्थापत्यकला का उत्कर्ष आलोच्य काव्यों में भी प्रतिभासित होता है। उस समय के शाही महल स्वर्ग से होड़ लेते थे। उनकी छबि निराली होती थी। उनमें भाँति-भाँति के रत्नों का मुक्त प्रयोग होता था। उनमें सुन्दर पक्षी पाले जाते थे, फूलों से वह इतना सजा दिया जाता था कि वहाँ मधुमास का दृश्य उपस्थित होता था। वस्तुतः ये महल काम-विलास के प्रतीक होते थे। ऊँचे-ऊँचे मन्दिरों में रत्नों के प्रयोग के साथ ही अनेक पशु-पक्षियों के चित्र भी खचित किये जाते थे। उनकी दिव्य आभा प्रत्येक दर्शक के हृदय में प्रफुल्लता का संचार करती थी । राजा-रईसों के बागों की शोभा भी निराली होती थी। उनमें कितने ही प्रकार के फल-फूलों के वृक्ष होते थे ।' चित्रकला मुगलकाल चित्रकला के पूर्ण विकास एवं वैभव का काल है । अकबर और जहाँगीर के युग में चित्रकला का विकास चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया था। अकबर चित्रकला का अनन्य प्रेमी था और जहाँगीर उसका सूक्ष्म पारखी और समालोचक था। इन दोनों ही सम्राटों ने चित्रकला को १. डॉ० ज्योतिप्रसाद : भारतीय इतिहास-एक दृष्टि, पृष्ठ ५८२ । २. यशोधर चरित, पद्य २८३ से २६० । ३. पार्श्वपुराण, पद्य ११७, पृष्ठ १३३ । वही, पद्य ८८-८६, पृष्ठ १३० । जहाँगीर 'तुजुके जहाँगीर' में स्वयं लिखता है-'यदि अनेक कलाकारों द्वारा एक से अधिक चित्र बनाये जायें, तो भी मैं प्रत्येक कलाकार की (क्रमशः)
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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