SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युग-मीमांसा कराने से शाहजहाँ अमर हो गया है । नाना रत्नों से जड़ा हुआ मयूर सिंहासन भी उसकी अनूठी कृति थी।' वस्तुतः शाहजहाँ की इमारतें रत्नजड़ित आभूषणों के समान हैं । उसके राज्याश्रय में जड़िया और चित्रकार की ‘कलाएं सफलतापूर्वक सम्मिश्रित हो गयीं। ...."मणि-कुट्टिम की चित्र-विचित्र कला शाहजहाँ के भवनों में चरम पराकाष्ठा को पहुंची है । सोने के रंग का मुक्त प्रयोग, नक्काशी की सूक्ष्मता तथा रत्नों व मणियों का जड़ाव शाहजहाँ की इमारतों में विलक्षण है । शाहजहाँयुगीन स्थापत्य में नक्काशी-कला व चित्रण-कला की विशिष्टता भी अधिक है। शाहजहाँ के पश्चात् औरंगजेब का राजत्व काल कलाओं के ह्रास का काल है। उसके शासनकाल में सभी कलाओं के साथ स्थापत्य कला का भी पतन हुआ। इस पतन के कारण थे—(१) औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता, (२) कला अप्रियता और (३) उस समय के अनवरत युद्ध, अशान्ति _ 'यह सिंहासन पलंग के समान था और उसके पाये सोने के बने हुए थे । मीनाकारी से बना हुआ चिकना और सुन्दर चन्दोवा पन्ने के बने हुए बारह खम्भों पर लगा हुआ था। प्रत्येक खम्भे में दो रत्नजटित मोर बने हुए थे । हीरा, लाल, पन्ना और मोती से लदा हुआ एक वृक्ष पक्षियों (मोरों) के प्रत्येक जोड़े के बीच में लगा हुआ था । अन्दरूनी छत में मीनाकारी हो रही थी और बाहरी छत में लाल तथा दूसरे रत्न जड़े हुए थे । सम्राट के सिंहासन तक जाने के लिए तीन सीढ़ियाँ रत्नों से जड़ी हुई थी और सिंहासन के चारों ओर ग्यारह चौखटें थीं। इसके बीचोंबीच एक केन्द्रीय रत्न था, जो एक सुन्दर लाल था और जिसे शाह अब्बास प्रथम ने जहाँगीर को भेंट में दिया था । नादिरशाह १७३६ ई० में मयूर सिंहासन को फारस ले गया । अब यह संसार में नहीं है।' -डॉ० आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव : मुगलकालीन भारत, पृष्ठ ५६८ । २. बी० एन० लूनिया : भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति का विकास, पृष्ठ ४०२-४०३ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy