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________________ नैतिक, धार्मिक एवं दार्शनिक परिपार्श्व .. ३३३ में छिपाकर, अपने अश्रुओं को अपनी आँखों में पीकर बलवान के सामने प्रतिक्रियात्मक या विद्रोहात्मक दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए। क्षमाशील क्षमाशील पुरुष संसार में वरेण्य है। जैसे-जैसे उसके हृदय में क्षमा का भाव बढ़ता जाता है, तैसे ही तैसे वह अधिकाधिक गुणों को धारण करता जाता है : जे षिमावान पुरिष जग माहिं । ते पहरें भूषण अधिकाहिं ॥' अंधा जिसके हृदय में ज्ञान को ज्योति नहीं जगमगाती, वह अंधा है। लोचनहीन पुरुष अंधा नहीं है, अंधा वह है जिसके अन्तर्लोचन बन्द हैं।' कामी ___कामी पुरुष रागानुरक्त होता है। उसे शीलधर्मपालन का उपदेश देना व्यर्थ है । वह सचेत कराने से सचेत नहीं होता। वह कान होते हुए भी बहरा और नेत्र होते हुए भी अन्धा है। उसकी विचार-बुद्धि खोने के साथ ही उस पर पागलपन छाया रहता है । १. यशोधर चरित, पद्य ३२० । लोचन हीने पुरुष कों, अंध न कहिये भूल । उर लोचन जिनके मुदे, ते आंधे निमूल ॥ -पार्श्वपुराण, पद्य ६४, पृष्ठ ८२। ३. वही, पद्य ७६, पृष्ठ ११ । .. सीता चरित, पद्य ९५२, पृष्ठ ५२ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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