SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३० जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन का अवलोकन किया जायेगा। मनुष्य का सामान्य जीवन 'स्व' से लेकर 'पर' तक फैला हुआ है, जिसमें व्यष्टि और समष्टि दोनों का समावेश हो जाता है। इन दोनों पक्षों के संदर्भ में विविध आयामों के अन्तर्गत नीति मनुष्य को जो मार्ग-दर्शन देती है, वही हमारे अध्ययन का विषय है और यहाँ उसी पर विचार करना है। इस प्रसंग में सज्जन, दुर्जन, नारी, बलवान्, क्षमाशील, मोह, तृष्णा, मन, शरीर, लक्ष्मी, उद्यम, भाग्य, संगति आदि के सम्बन्ध में कही गयी नीत्युक्तियों को लिया जायेगा। सज्जन थोड़े से प्रबन्धों, विशेषकर 'पार्श्वपुराण' में सज्जन-दुर्जन की स्तुतिनिन्दापरक नीतियों का विधान मिलता है । सज्जन सदा शान्त स्वभावी होता है । वह परहित को अपना धर्म समझता है, अपने प्राणों का रस घोलकर दूसरों को सुधापान कराता है। वह उस पीयूषवर्षी मेघ के समान है, जो अपने प्राणों से पर-प्राणों को पोषित करता है। उसकी चाल सदैव हंस के समान होती है, सर्प के समान वक्र नहीं।' ___ सज्जन दुष्ट पुरुषों द्वारा सताया जाता है, किन्तु इससे उसके सरल स्वभाव में कोई अन्तर नहीं आता, अपितु उसका सौजन्य और भी बढ़ता जाता है, जैसे क्षार के संयोग से दर्पण और अधिक द्युतिमान हो उठता है।' परम्परा यही है कि वह अपकार के बदले उपकार करता है। जैसे चन्दन को कुठार-मुख से काटे जाने पर भी वह सुरभि फैलाता है, वैसे ही सज्जन भी दुर्जन द्वारा सताया जाने पर उपकार-भाव को नहीं छोड़ता : सज्जन टरे न टेव सों, जो दुर्जन दुख देय । चंदन कटत कुठार मुख, अवसि सुवास करेय ॥ १. पार्श्वपुराण, पद्य ५७, पृष्ठ ८ । दुर्जन दूखित संत कौ, सरल सुभाव न जाय । दर्पण की छवि छार सों, अधिकहि उज्जल थाय ॥ -पार्श्वपुराण, पद्य १०६, पृष्ठ १३ । ३. वही, पद्य १०७, पृष्ठ १४ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy