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________________ भाषा-शैली ३२३ व्यंग्य या भर्त्सना-शैली हमारे काव्यों में अनेक रूपों में प्रशस्त है। आगे 'संबोधन-शैली' पर आइये। संबोधन शैली प्रस्तुत शैली का आश्रय 'शील कथा', 'राजुल पच्चीसी', 'नेमिचन्द्रिका' (आसकरण) प्रभृति काव्यों के भावात्मक प्रसंगों में अधिक लिया गया है । 'शील कथा' में जब पति की अनुपस्थिति में मनोरमा के चरित्र पर लांछन लगाकर श्वसुर के घर से सारथी द्वारा निर्वासित करा दिया जाता है और जब उसे अपनी माँ के यहाँ भी आश्रय नहीं मिलता, तब भयंकर वन में डोलती हुई मनोरमा के विलाप में कवि ने इस शैली का सफलतापूर्वक उपयोग किया है। इसी प्रकार 'नेमिचन्द्रिका' में नेमिनाथ के संसार-त्याग के अवसर पर उनके पीछे-पीछे चलती हुई राजुल की वाग्धारा में इसी शैली को अपनाया गया है। ए तुम सुनहु न नेमि कुमार, बचन सुन लीजिये हो । ए कोई कहियो जाय समझाय, बिछोहा न कीजिए हो ।' __ वस्तुत: यह शैली हृदय से तादात्म्य स्थापित करने वाली स्पष्ट और प्रसत्र शैली है । इसमें करुण-मधुर भावाभिव्यक्ति के कारण सहजतः, रम्यता और सरसता का सन्निवेश है । अब 'मानवीकरण या मूर्तीकरण-शैली' द्रष्टव्य है। मानवीकरण या मूर्तीकरण शैली मानवेतर को मानव या अमूर्त को मूर्त रूप में चित्रित करने वाली शैली १. हा तात कहा तुम कीनो । मेरो न्याय निबेर न लीनो । हा मात उदर ते धारी । मोकों नव मास मझारी॥ -शील कथा, पृष्ठ ३७ । २. नेमिचन्द्रिका (आसकरण), पृष्ठ १८-१९ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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