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________________ भाषा-शैली ३१७ के लिए अधिक उपयुक्त होता है और आलोच्य काव्यों में अधिकांश स्थलों पर इसी रूप में उसका व्यवहार हुआ है। इसी प्रकार करिखा' का प्रयोग रौद्र और वीर रस की अभिव्यक्ति में अधिक सक्षम हुआ है, जैसे- 'वरांग चरित' और 'चेतन कर्म चरित्र" में, किन्तु इसके विपरीत इसी छन्द का प्रयोग 'नेमीश्वर रास' में उपदेशादि के प्रसंग में किया गया है, जो अति सामान्य रूप में अभीष्ट भावों को व्यक्त करता है। दूसरी ओर, उसी काव्य (नेमीश्वर रास) की प्रायः समस्त ढालों (१०१० ढालों) में सभी भाव-रसों की कुशल अभिव्यंजना है। कहने का तात्पर्य यह है कि छन्दों का शैली के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान है। छन्द की योजना में स्वतंत्रता बरती गयी है। कुछ काव्य सर्गबद्ध नहीं हैं । जो सर्गबद्ध हैं, उनमें या उनके सर्गों में एक ही छन्द रखने की परम्परा का निर्वाह नहीं है। सर्गान्त में छन्द-परिवर्तन का विधान कहीं मिलता है और कहीं नहीं । अधिकतर स्थलों पर भाव-रस और कथावस्तु के मोड़ों के अनुकूल बदलते हुए छन्द प्रयुक्त हुए हैं । अधिकांश कवियों को 'चाल' छन्द ने अधिक विमोहित कर स्थल-स्थल पर अपने व्यवहार के लिए जैसे उन्हें विवश कर दिया है। इसी प्रकार लोकसंगीत से आकृष्ट होने वाले कवि 'ढालों' को अपने काव्यों में स्थान देना नहीं भूले हैं। शैली विवेच्य काव्यों की भाषा पर विचार कर लेने के पश्चात् उनकी शैली पर भी दृष्टि डालनी चाहिए क्योंकि भाषा-शैली, दोनों एक-दूसरे की पूरक हैं । भाषा का सम्बन्ध जहां भावों की अभिव्यक्ति से है, वहाँ शैली का सम्बन्ध अभिव्यक्ति के प्रकार से है । यहाँ शैली के अन्तर्गत आलोच्य प्रबन्धों में प्रयुक्त शैलियां प्रमुखतः विचारणीय हैं। १. हंस की फौज ते बान घमसान के गाजते बाजते चले गाढ़े। मोहकी फौज को मारि ललकारि करि हेयोपादेय के भाव काढ़े॥ -चेतन कर्म चरित्र, पद्य १५८, पृष्ठ ७१ । २. नेमीश्वर रास, पद्य ११७७-११८०, पृष्ठ ६६ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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