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________________ भाषा-शैली देखते ही बनता है । को खोलकर रख देने को समेटकर रख दिया है ! इसमें भाव का उत्कर्ष इसमें शब्द प्रयोग भी बड़ा सटीक और अर्थ के मर्म वाला है । पहली पंक्ति में 'ज्यों ज्यों' और दूसरी पंक्ति में 'त्यों त्यों' का प्रयोग भाव के प्रभाव को विस्तार दे रहा है । अभिधा का उपयोग अधिकांश स्थलों पर वर्णनात्मक अंशों के चित्रण के लिए हुआ है । ऐसे स्थल जहाँ लम्बे हैं, वे अवश्य ही नीरस हैं; किन्तु जहाँ वे संक्षिप्त हैं, वहाँ उनकी मार्मिकता हृदय को आन्दोलित करने में समर्थ है । कहीं-कहीं ऐसे स्थल बिम्बप्रस्तुतीकरण में भी सहायक हुए हैं । उदाहरणार्थ : मंगाये हां ! गढ़ाये हां ! अरी चंदन के षंभ अरी सो अंगन बीच अरी ऊँचा कर मंडप अरी चन्द्रोपम सरस बनाया हां छाया हां ! अरी जे सकल अरी जदुपति कें सुहागन आई हां ! महंदी लाई हां ! अरी कोई चित्र विचित्र बनावै हां ! अरी कोई षरी परी पौन ढारे हां ! चित्र विचित्र सबै मिलकं गीत मंगल गावहीं। प्राण ढारे चंदन छवि पे हरद तेल चढ़ावहीं ॥ ' यहाँ कवि वैवाहिक वातावरण का दृश्य साकार करने का अभिला है | उसने सहज शब्दों में संगीत का पुट देकर काव्यगत लक्ष्य को ही पूरा नहीं किया है, वरन् दृश्य में रंग भर कर उसे आलिंगन योग्य बना दिया है । २८७ कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे आलोच्य काव्यों में शब्द की अभिधा शक्ति से अधिक काम लिया गया है; सिद्धान्त कथनों, शान्त और भक्ति रस के प्रसंगों में तो उसका और भी अधिक व्यवहार हुआ है ।" १. नेमिनाथ मंगल, पृष्ठ ३ । २. (क) पार्श्वपुराण, पद्य ३०-३३, पृष्ठ १४२ । (ख) मधुबिन्दुक चौपई, पद्य ५२-५४, पृष्ठ १४० ॥ (ग) शीलकथा, पृष्ठ ३६-४० ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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