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________________ चरित्र-योजना २१३ पंचेन्द्रिय ____ 'पंचेन्द्रिय संवाद' में कवि ने नाक, कान, आँख, रसना, मन का मानवीकरण कर उनके सांगोपांग शील-निरूपण का प्रयास किया है। उसने उनके चारित्रिक गुण-दोषों को बड़ी मार्मिक शैली में अभिव्यंजित किया है। पाँचों इन्द्रियाँ अपने अनेक गुणों के कारण महत्त्वपूर्ण हैं । उन्होंने स्वयं अपने मुख से अपनी चरित्रगत विशेषताओं पर प्रकाश डाला है । नाक कहती है : नाक रहे तें सब रह यो, नाक गये सब जाय । नाक बरोबर जगत में, और न बड़ो कहाय ॥ प्रथम वदन पर देखिये, नाक नवल आकार । सुन्दर महा सुहावनों, मोहै लोक अपार ॥ यही पद्धति प्रत्येक इन्द्रिय ने अपनायी है और अपने मुख से अपनी महत्ता को प्रतिपादित करते हुए अपने चरित्रादर्श को प्रकट किया है। काव्य में उपर्युक्त इन्द्रियों का एक दूसरा पक्ष भी उभरा है और वह पक्ष है उनके चरित्र का अंधकारपूर्ण पक्ष । यहाँ कवि ने उनके चरित्र के दुगुणों का अन्वेषण परस्पर इन्द्रियों द्वारा कराया है। उनमें परस्पर स्पर्धा की बलवती भावना दृष्टिगोचर होती है, फलतः वे एक-दूसरे को अपदस्थ करती हुई उन्हें निम्नस्थ श्रेणी में रख देती हैं। उदाहरणार्थ, कान द्वारा नाक की यह भर्त्सना देखिये : कान' कहै रे नाक सुन, तू क्यों करै गुमान । जो चाकर आगे चलै, तो नहिं भूप समान ।। नाक सुरनि पानी झरै, बहै सलेष्म अपार ।। गूंघनि कर पूरित रहै, लाजै नहीं गँवार ।। १. पंचेन्द्रिय संवाद, पद्य १४-१५, पृष्ठ २४० ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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